________________
कनककीर्ति
बाहुबलि नो छन्द-इसकी एक पाण्डुलिपि दि, जैन मन्दिर कोटडिया टुगरपुर के एक गुटके में संग्रहीत है । डा. प्रेमसागर जैन ने इस का नाम भरत बाहुबल छन्द नाम दिया हुआ है। इस कृति में वादिचन्द्र ने अपने गुरु का नाम निम्न प्रकार किया है
___ एमागे मासान्द्र, गएर बोल्य वादिचन्द्र ।
४-नेमिनाथ नो समवसरण, ५-गौतमस्वामी स्तोत्र एवं ३-द्वादपा भावना की पाण्डुलिपियां दिगम्बर जैन खाडल बाल मन्दिर उदयपुर के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत हैं । इस गुटके में वादिचन्द्र के गुरु भ. ज्ञानभूयण एवं भ. वीरचन्द्र प्रादि की कृतियाँ भी संग्रहीत हैं। डा. प्रेमसागर जैन ने अाराधना गीत, अम्बिका कथा एवं पाण्डवपुराण इन कृतियों का और उल्लेख किया है । र
३०. कमककोति
कनक्रकीति नामक दो विद्वान हो गये हैं। एक कनकक्रोति खरतर गच्ट्रीय शाखा के प्रसिद्ध जिनयन्द्रसूरी की शिष्य परम्परा में नमकमल के प्रशिष्य एवं जयमन्दिर के शिष्य थे । जैन गुर्जर कविश्नों भाग एक में इनकी दो रचनायें नेमिनाथ रास एवं दोपदीरास का उल्लेख हुआ है । इनका निर्माण क्रमश: बीकानेर एवं जैसलमेर में हुमा था इसलिये संभवतः कवि उसी क्षेत्र के होंगे ।
दूसरे कनककौति दिगम्बर विद्वान थे और वे भी १७वीं शताब्दी के ही थे। इन्होंने अपने पापको माणिक का शिष्य होना बनाया है। इन कनककीति की दिगम्बर भण्डारों में पर्याप्त संख्या में कृतियां मिलती हैं । तत्वार्थ सूत्र की तसागरी टीका पर हिन्दी गद्य में जो टीका लिखी है यह दिगम्बर समाज में बहुत लोकप्रिय टीका है। इसकी भाषा हारी है इसलिये लगता है कि ये कनककीति दाहड प्रदेश के किसी ग्राम अथवा नगर के रहने वाले थे। उन्होंने अपनी किसी भी रचना में खरतरगच्छ अथवा नयकमल के नाम का उल्लेख नहीं किया है इसलिये डा. प्रेमसागर जैन का दोनों विद्वानों को एक मानना सही प्रतीत नहीं लगता।
दिगम्बर कनककीति की अब तक निम्न रचनामों की खोज की जा चुकी हैं।
१. हिन्वी जैन भक्ति काव्य और कवि-पृष्ठ संख्या १३८ २. हिन्दी जैन मक्ति काव्य और कवि-पृष्ठ संख्या १३९ ३. हिन्वी जैन भक्ति काव्य और कवि-पृष्ठ संख्या १७८