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भट्टारक रस्नकोति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
२३५ प्राचार्य बना दिया | गुणकीति अत्यधिक प्रतिभाशाली एवं चतुर सन्त थे | ज्ञान एवं विज्ञान के वे पारगामी विद्वान थे। संघ व्यवस्था में वे कुमाल थे। उनके गुरु महारक सुमति कीति उनसे प्रतीत्र प्रसन्न थे और अपने योग्यतम शिष्य को पाकर अत्यधिक प्राशान्चित थे। इसलिये उन्होंने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । बागड़ देश में उन्होंने अपना पूरा प्रमुख स्थापित कर दिया।
___ डूगरपुर के उस समय रावल प्रासकरण शासक थे । वे नीति कुशल न्यायप्रिय शासक थे | उनके शासनकाल में जैनधर्म का घारों पोर प्रभाव था। नगर में भनेक संघपति थे जिनमें कान्हो, धर्मदास, रामो, भीम, पोकर, दिडो, कचरो, रायम आदि के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। इन्होंने नगर के बाहर महाराजा आसकरण से क्षत्रक्षेत्रीय बावड़ी के लिये स्थान माँगा और एक महोत्सव के मध्य उसकी स्थापना की गयी । इस समय जो जलयात्रा का सुन्दर जलूस निकाला गया था उसका वर्णन भी प्रतीय सजीव एवं सुन्दर हुमा है।
संवत् १६३२ में इन्होंने भी एक विशेष महोत्सव में अपने ही शिष्य को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और उसका नाम पदमीति रखा । गुणकीर्ति ने इस समारोह को बड़ी धूमधाम से प्रायोजित किया। युवतियों ने मंगल गीत गाये । विविध प्रकार के बाजा बजे। देश के विभिन्न भागों से उस समारोह में भाग लेने के लिये संकड़ों व्यक्ति पाये। शान्तिदास
ये कल्याणकीति के शिष्य थे। बल्लबलीवेलि इनकी प्रमुख रचना है जिसको लघु बाहुबली बेलि के नाम से लिखा गया है। इसमें २६ पद्य है। उक्त बेसि के अतिरिक्त इनकी अनन्तप्रस विधान, अनन्तनाथपूजा, क्षेत्र पूजा, भैरवमानभद्र पूजा प्रादि और भी लघु रचनायें मिलती है। हिन्दी के अतिरिक्त, संस्कृत में भी कुछ पूजा कृतियां मिलती है । लनु बाहुबली वेलि में इन्होंने अपना निम्न प्रकार परिचय दिया है
भरतनरेश्वर प्राधीया नाम्यु निजवर शीस जी। स्तवन करी इस जपरा किंकर तूईस जी। ईस सुमनि खाड़ीराज ममानि पापीउ।। इम कही मन्दिर गया सुन्दर ज्ञान भवने व्यापीउ । थी कल्याणकीरति सोम मुरति, चरण देव मिनारिण कइ । शांतिदास स्वामी बाहुबलि सरण राख्नु प्रभु तुम्हतणी ।