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भट्टारक रनकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कुमुवचन्द्रनी हमची सुन्दर नर एक निरुपम उदयो. अवनी अधिक उदार । मूलसंघ मुगटामणि दिनमणि सरसति गछ भंडार रे ॥ १ ॥ हमषजी माहरी हेलि रे, गोरनी बहो मोहन वेलि । रनकोरति पाटई कुमुदचन्द्र सोहे, सेवो सजन साहेल रे ॥ २ ॥ सकल' पर गुणे पारी मंख्ति, गण्डल धन पाय ! सदाफल सा तस नयरि, सुन्दर पदमाबाई धन पाय रे ॥३॥ एबेहू फूखे नर निपनो पावन पुरुष पवित्र । बास ब्रह्मचारी संग नहीं नारी, समकित चित सोहें वितरे ॥४॥ सामुद्रिक शुभ लक्षण सोहे, कला वहोत्तरि अंग । चतुर चउरलहे पंच प्रेमे बहे पण्य रयण हरे दंग रे ॥ ५ ॥ सील सोहागी ज्ञान गुणोकरी, कंदर्प वर्ष हरायो । माग्य मापणे सोहे गोर सजनी, उत्तरथी प्राहां प्राको रे ॥ ६ ॥ संपत्ति काहानजी सेहेस करण धमवीर भाई गूरो मल्लिदास । गुण मंडित गोपाल सहुमली, प्राध्यो पट्टोधर पास ।। ७ ।। कल्याणकीरति प्रचार प्रनोपम, उपम अवनी अपार । महिमाबत महीमा मुनिधर, माने मोटा महित रे ॥ ८ ॥ संवत् सोल छपन्ने संवत्सर प्रगट पटोधर थाप्या । वारबोली नयरे रत्नकीरति गोरे सुर मंत्र शुभ प्राप्या ॥ ६ ॥ दिन-दिन दीपे परमत जीये जति जिन शासन धन्द्र । श्रीसंघ सानिध नाम कहे, गोर कुमुदचन्द्र मुनेन्द्र रे ॥ १० ॥ पंस्ति पणे प्रसिद्ध प्राकमो वागवादिनी पर एहने । सेवो सुरतरु चित्यो चिन्तामणि उपमा नहीं केहने रे ।। ११ ।। परम पावन गोर पूजनां प्रेमे अस जो करे मझ मन । नयएँ नीरखी सजनी सहे गोर ते दिन कहिस्थ धन्य रे ।। १२ ।। साध पुरुस जेम नीजिन वांधे मधुकर मालति संग । माम सरोवर मराल वांछ, चतुरने चतुर सुरंग रे ॥ १३ ।। चकवी जिम दिन करने वांछे, चातुक मेह मन पाय । तिम पंछ हूं कुमुदचन्द्र गोर, पूजता पाय पलाय रे ॥ १४ ॥ सवाष्टके सोमतो सेहे गोर, वादी ए कही है सजनी ।