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पद एवं गीत
धर्मभूषण सूरी मंत्र ज प्राप्या, थाप्या थी शुभचन्द्र ।
अभयचन्द्र ने पाटि विराज, सेये सज्जन 'इसर २८ .. दिम दिम मद्दन तबलन फेरी. सत्ताथेई करंत ।
पंच शबद वाजिन ते वाजे, नादै नभ गज्जत रे ।। २१ ।। मनोहर मानिनि मंगल गावत, गंद्रव करत सुगांन ।
बंदीजन बिझदावली बोले, धापे अगणित दान रे ।। २२ ।। थी मूलसंघ सरस्वती गछे, विद्यानन्दी मुनींद ।
मल्लि भूषण पद पंकज दिनकर, उदयो लक्ष्मीचन्द्र रे।। २३ ॥ सहेर वंश मंडण मुकटामरिण, अभयचन्द्र माहृत ।
मभयनन्दी मन मोहन मुनिवर, रत्नकीरति जयवंत रे ।। २४ ॥ मोठ वंश भर हंस विचक्षण, कुमुदचन्द्र जयकारी ।
तस पद कमल दिवाकर प्रगट्यो, सेव करे नरनारी रे ॥ २५॥ प्रभयचन्द्र गस्यो गछनायक सेषित नृप नर वृद ।
तस पाटे गुरु श्री संघ सानिध थाप्या श्री शुभचन्द्र रे ॥ २६ ॥ परवादी सिंधुर पंचानन, वादी मां अकलंक ।
अमर मांहि जिम द्र विराजे, सरवरि मांहि ससांक रे ।। २७ ॥ दिवस मांहि जिम रवि दीपंतो, गिरि मां मेरु महंत ।
तिम श्री अश्यचन्द्र ने पाटि, श्री शुभचन्द्र सोहंत रे ।। २८ ।। श्री शुभचन्द्र तपीए हमची, जे गाये जिन धामे । श्रीपाल विवध वदे ए वांगी, ते मन वंछित पाये रे ।। २६ ।।
॥ इति श्री शुभचन्द्रनी हमची समाप्त ।।
प्रमासि सुप्रभाति की श्री गोर गायो ।
जेम मन वंछित वेग ले पाउ | सूरी अभयचन्द्र नां पद प्रणमीजे ।
जमन जनम तराई दुख गमोजे ।। सु० ॥१॥ पंच महाव्रत सुध ला धारी ।
पंच समिति धरे अंग उदारी ।। सु० ॥ २ ॥