________________
२२६
मुभव हमची
राग कल्याण
मादि पुरुष मजो आदि जिनेंदा ।। टेक ॥ सकल सुरासुर शेख सु मंतर, नर खग दिनपति सेवित चंदा ।। जुग आदि जिनपति भये पावन ।
पति उदारण नाभि के नंदा ।। १ ।। दीन दयाल कृपा निधि सागर ।
मार करो प्रष तिमिट दिनेदा आदि।। २ ।। केवलग्यांन थे सब कछू जानत |
काह कहू प्रभु मो मति मंदा॥ देखत दिन दिन चरण सरमा त :
विनती करत यो सूरि शुभचन्वा प्रादि०।। ३ ।।
राग सारंग
कौन सखी सुध लावे श्याम की ।। कोन सस्त्री० ॥ मधुरी धुनी मुखचन्द विराजित, राजमति गुणगावे ।। श्यामः ॥ १ ॥ अंग विभूषण मनोमय मेरे, मनोहर माननी पावे । करो कयू तंत मंत मेरी सजनी, मोहि प्राननाथ मीलावे श्याम ॥ २ ॥ गजगमनी गुग मंदिर श्मामा मनमथ मान सतावे । कहा अवगुन मन दीनदयाल', छोरि मुगति मन भावे ।।श्याम०।। ३ ॥ सम सखी मिलि मन मोहन के ढिग, जाई कथा सु सुनावे । सुनो प्रभु श्री शुभचन्द्र के साहेब, कामिनी कुल क्यों लजावे ॥ ४ ॥
(५) शुभचन्द्र हमची पावन पास जिनेश्वर वंदु अंतरीक्ष जिनदेव ।। श्री शुभचन्द्र तणा गुण गाउं, वागवादिनी करि सेव रे ॥ १ ॥ शणि वयणी मृग नयणी पावो सुन्दरी सहू मलि संमें ।
गाऊ श्री शुभचन्द्र तणोवर पाट महोव रंगे ।। २॥ श्री गुजरात मनोहर देशे, जलसेन नगर सोहावे ।
गढ मठ मंदिर पोलिपगार, सबल खातिका भोवरे ।। ३ ।। 'हुनड' वंश हिरणी हीरा, सम सोहे मनजी धन्य ।
तस मन रंजन माणिक दे शुभ, जामो सुन्धर सष्ठ रे ।। ४ ।।