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महारक रानकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
( ५८ ) राग प्रभाती
जागि ही भविमण सफल विहाणु ।
वृषभ जिन अजित संभव सुखकारी ।
सुमिति पद्मप्रभ सागर गुण गाव' ।
जिनकी सुपासना गुरण नरण ध्याये ॥ ला० ॥ ३ ॥ चिसो चंद्रप्रभ देव जिनराज
पुष्पदंत नमों जिन सरे काज ॥ जा० || ४ || सकल सुख खांरगी सीतल जिनदेव ।
समरी श्री मांस सुर नर करे सेव । जा० ॥ ५ ॥
पूजतां वासुपूज्य गुरण सार
नाम जिनराज नूल्योखले भांण ॥ १
धर्म जिन शांति कुध भर महिल ।
राग प्रभाती :
देव प्रभिनंदन प्रगट्यो भवहारी ॥ जा० ॥ २ ॥
नमो मुनिसुव्रत नमि दुःख चरण ।
उठो
पछे
विमल अनंत भवसागर
पास जिन घास पूरे महावीर । एह चोवीस जिन
जे नर नारी ए बीनती गास्ये ।
देव
गूरु
भंग कीवी जैसों कामनी मल्ल | जा० ।। ७ ।।
नेमि जिनवर मनवांछित
चली ॥
जागि हो भवियण उंधीये नहीं घणू ।
तार ।। जा० ॥ ६ ॥
पुरण | जा० ॥ ६ ॥
मेरु समधीरं ॥ जा० ॥ ॥
पंच
कहे कुमुदचन्द्र ते नर सुखी थास्ये || जा० ॥ १० ॥ ( ५६ )
सु प्रभाति तू नाम ले जिन तर ॥ प्राचली ॥ १ ॥ जिम राजनें देहरे जहए |
देव मुखि देखतां जिम सुख लहीये | जागि० ॥ २ ॥
पद बंदी श्री गोर क्रेग ।
छुटी जिम वली भवतां फेरा || जागि०॥ ३ ॥
साख्य समायक
कोजे । परमेष्टी नाम जपीजे || जागि० ॥ ४
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