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________________ २२० प्रभाती घणे कष्ट जिनराज नु देव पाम्यों। हवे सर्व संसारना दुक्ल वाम्यो ।। जारे श्री जिनराज नु रूप दोष्ट। त्यारे लाचने ख्यढलु अमीय ल ।। ७ ।। प्रावी कामधेनु घर माहे चाली। भरी रत्नचितामणी हेम थाली । जाणू पर तरणों प्रागणे कल्पवृक्ष । ____ फलो पालव वाछित दान सोक्ष ।। ८ ।। गयो रोग संताप ले सर्व माठो । जरा जन्मने मरण नो बासना हाठो ॥ हथे सरणे प्राप्या तणो साज कीजे । __ कऱ्या जे अपराध सह स्वमीजे ॥ ६ ॥ घणु विन, नबू छु जगनाथ देवो । मने ग्राप जो भव भज स्वामि सेवो ।। एह वीनती भावसु जे भरणसे । कुमुदचंद्र नो स्वामि शिव सौख्य देसे ॥ १० ॥ ( ५७ ) राग प्रभाती जाग रे भवियण उघ नवि कीजे । थयुसु प्रभावित नोकार गणीजे ।। प्रांवली ॥ प्रथम परहंतनू लीजिये नाम । जेम सरेह अडलों वचित काम ॥ जागो० ॥ १ ॥ सिद्ध समरता प्रालस मूको । माणस जनम ते फोकम घूको । जा० ॥ २ ॥ पंच आपार पाले यतिराय । तेहर्ने बंदता पाप पलाय ॥जा० ॥ ३ ॥ जे उक्झाय साहे श्रुतवंत । तेह ध्यान धरिये एक चित ।। जा० ॥ ४ ॥ साधु संमरीई जे अत पाले। निर्मल ताप करी कर्ममल टाले ॥ ज० ॥ ६ ॥ पंच परमेष्ठि जे ए नितु ध्याई । कहे कुमुवचंद्र से नर सुखी थाये । बा ॥ ७ ॥ वह
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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