SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ भट्टारक एवं रत्नकीति फुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व विण बांके किम छांडियो, अबस्ला निरधारी । बोल्या बोल न चूकीए, जिन जी मनोहारी ।। ३ ॥ पशु प्रवाडि देखी फर्या ए मसि सहु खोटु । विगर संभारे आपण ये जगमा मोटु ॥ ४ ॥ दीन दयाल दया करो, रथ पाछो वालो । समुद्र विजयनी प्रणि तले जो प्राधा चालो ।। ५ ।। मन मोहन पाछा चलो गृह पावन कीजे 1 मोयन वय प्रति रुपडू तेह्नो रस लीजे ।। ६॥ हास विलास करो घणा, रमणीस्यु रमतां । सुख भोगषीइ सामला सुन्दर मनि रमतां ।। ७ ।। प्रिय पाखि दुर्जन हसे घरि किम करी रहीये | बिरह तरणां दुध दोहिला कहु किम सहीये ॥ ८ ॥ अन्न उदक भाये नहीं, विष सरिन लागे । मंडन मान-मनि नहीं, कामानल जाये ।। ६ ।। इम कहेनी रडति थकी राजुल ते थाकी । नेम निदुर माने नहीं गयो गिरिरथ हाकी ।। १० ।। कुमुदचन्द्र प्रभु शामलो जेरणे संयम धरीयो । मुगति वधु अति रुबडी तेहने जई वरियो ।॥ ११॥ गीत : (४२ ) करो तम्हे जीव दया मनोहारी, हिंसा नो मत जोरे प्राणी । जिम पामो भव पार ।। १॥ पिष्ट शिखंडिक नीहि साथी, लागु पाय अपार । जूउ यशोघर चन्द्रमति बेहु, भमीयां भवत्रण च्यार ।। २ ॥ भव पहेले भुपति के कीमा, स्वान तरणो अवतार । धीजें भवे बन मांहिं सेहलो, श्याम भुजंगम स्फार ॥ ३ ॥ मीन थयो त्रीजे चंचल, सिन्धू विषय शिशुमार । जाल बन्ध प्रति खेदन भेदन दुक्खा तरणो भण्डार ॥ ४ ॥ भव चौथे अज अजा परणें न हुउ सुक्ख लगार । जनम पांच में अज भैसो थई, दह्यो प्रलेख भार ।। ५ ।। भव छठे चरणायुघ पक्षि बेहने जीब अहार । सातमें भवें कुसुमावलि गर्ने, युगल हवा ते उदार ।। ७ ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy