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पूर्व पीठिका
[सं०] १६२१ मे १७०० तक का काल देश के इतिहास में शांति एवं समृद्धि का काल माना जाता है। इन वर्षों में तीन मुगल सम्राटों का शासन रहा । सं० १६३१ से १६६२ तक प्रकबर बादशाह ने सं० १६६२ से १६६५ तक जहांगीर ने तथा शेष सं० १६६५ मे १७०० तक शाहजहां ने देश पर शासन किया। राजनीतिक संगठन, शान्ति तथा सुव्यवस्था की दृष्टि से अकबर का शासन देश के इतिहास में सर्वथा प्रशंसनीय माना जाता है। इसी तरह जहांगीर एवं साहजहां के शासन काल में भी देश में शान्ति एवं पारस्परिक सद्भाव का वातावरण बना रहा। अकबर का राज दरबार कवियों, विद्वानों, संगीतज्ञों एवं कला प्रेमियों से अलंकृत था । उस युग में कला की सर्वागीण उन्नति होने के साथ साथ हिन्दी कविता भी अपने उत्कृष्ट विकास को प्राप्त हुई। महाकवि सूरदास एवं तुलसीदास दोनों ही प्रकचर के शासन काल में इनके प्रति के बार में भी कितने ही हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे जिनमें नरहरी, तानसेन एवं रहीम के नाम उल्लेखनीय है । हिन्दी के प्रसिद्ध जैन कवि बनारसीदास अकबर एवं जहांगीर के शासन काल में हुए । जिन्होंने अपनी अकथानक नामक जीवन कथा में दोनों ही बादशाहों के पारसन की प्रशंसा की है। वे अकबर के शासन से इतने प्रभावित थे कि जब उन्हें बादशाह को मृत्यु के समाचार मिले तो वे स्वयं मूछित हो गये और सम्राट के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट की ।
इन ७० वर्षों में देश में भट्टारक युग भी अपने चरमोत्कर्ष पर या राजस्थान में एक ओर भट्टारक चन्द्रकीर्ति तथा भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के आमेर, अजमेर, नागौर आदि नगरों में केन्द्र में तो वागड़ प्रदेश भट्टारक सकलकीति की परम्परा में होने वाने भट्टारक सुमतिकीर्ति, गुणकीर्ति तथा भट्टारक लक्ष्मीचन्द की परम्परा में होने वाले भट्टारक रत्नकीर्ति कुमुदनन्द्र ग्रपने समय के प्रमुख जंन सन्त माने जाते थे । इन भट्टारकों के कारण सारे देश में एवं विशेषतः उत्तर भारत में जैनधर्म की प्रभावना एवं उसके संरक्षण को विशेष बल मिला। उस समय के वे सबसे बड़े सन्त थे जिनका समाज पर तो पूर्ण प्रभाव था ही किन्तु तत्कालीन शासन पर भी उनका अच्छा प्रभाव था। शासन की ओर से उनके बिहार के अवसर पर उचित प्रबन्ध ही नहीं किया जाता था किन्तु उनका सम्मान भी किया जाता था। शासन