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मेघसरगर
छाट छोटे गीत लिख दिया करते थे। इन्होंने अपने एक गीत में खान मलिक द्वारा भट्टारक रत्नकीति का सम्मान किया गया था, ऐसा उल्लेख किया गया है ।
श्री अभयनन्द पाटि पटोधर, रत्लकीरति गोर बंदो जी। बंदे सुख लक्ष्मी बहु फामो, तो जन्मना पाप मिकन्दो जी । वेठा सिंहासन सभा मनरंजन,"..."हा अधिक.. . संचे जी । अगम छन्द प्रमाण ए व्याकरण मलहरी वसतिहो वाजे जी ।
लक्षण वतीस सकल कला अंगि बहोत्तरि, खान मलिक दिये मान जी ।
घन्य ए घोषा नयर बवाणु, हुबड बंश सुजाण जी । श्री रत्नकीरति चरण नमीने, भविषण करे नखाए जी । धन्य सहेजलदे मात बस्त्राग, देवदास सुत रतन जी। कर जोडी ने राधव बीनवे, जीव दया शुभ मन जी ।
गोरने जीव दया शुभ मन जो ॥
६५. मेघसागर
__ मेघसागर ब्रह्मचारी थे तथा भट्टारक कुमुदचन्द्र एवं प्रभयचन्द्र के संघ में रहते थे। इन्हें भी छोटे छोटे गीत लिखने में नानन्द प्राता था। संवत १६.५ में जब अभय चन्द्र को भट्टारक पद पर अभिषिक्त किया गया था तब ये वहीं थे । उन्होंने उसका एक गीत में वर्णन भी किया है। पुरा गीत यहां दिया जा रहा है
गुरुगीत-राग मल्हार सकल जिनेश्वर प्रणमीने, सारदा न बली पाय । कुमुदचन्द्र पाटि गाईए, अभयचन्द्र गुरु राय रे । प्राबो सुन्दरी तम्हे सहु मिली, जिन मन्दिर भन्सार रे ||पांचली॥१४॥ मूलसंधे गुरु जारिणये, सरस्वती गछे जेह रे । लेह तणा गुण वर्णव धरी अधिक सनेह रे । मावो।।२।। सूरी वामदचन्द्र पाटि अभिनवो गौतम अवतार रे। चरित्र पाले निर्मला, घरे पंच प्राचार रे यावी।।३।। पंच महावत उजला, पंच समिति सुवचार रे। प्रय गुपति ने वक्ष कर, चारित्र तेर प्रकार रे |मायो।।४।।