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________________ लेखक की ओर से राजस्थानी एवं हिन्दी साहित्य इतना विशाल है कि सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भी उसके पूरे भण्डार का पता लगाना कठिन है। उसकी जितनी अधिक खोज की जाती है, साहित्य सागर में से उतने ही नये नये रत्नों की प्राप्ति होती रहती है । जैन कवियों की कृतियों के सम्बन्ध में मेरी यह धारणा और भी सही निकलती है । राजस्थान, मध्यप्रदेश, देहली, एवं गुजरात के शास्त्र भण्डारों में अब भी ऐसी संकड़ों रचनाओं की उपलब्धि होने की सम्भावना है जिनके सम्बन्ध में हमें नाम मात्र का श्री ज्ञान नहीं है प नहीं दिया जब हम पूरी तरह से ऐसी कृतियों की खोज कर चुके होंगें । चतुर्थ भाग में संवत् १६३१ मे १७०० तक की अवधि में होने वाले जैन कथियों की राजस्थानी कृतियों को लिया गया है। ये ७० वर्ष हिन्दी जगत के लिये स्वरणं युग के समान थे जब उसे महाकवि सूरदास, तुलसीदास, बनारसीदास, रत्नकीर्ति कुमुदचन्द्र, ब्रह्म रायमल्ल जैसे कवि मिले। जिनका समस्त जीवन हिन्दी विकास के लिये समर्पित रहा। उन्होंने जीवन पर्यन्त लिखने लिखाने एवं उसका के थुग का प्रचार करने को सबसे अधिक महत्व दिया तथा नवीन काव्यों के सृजन निर्मारण किया । 1 पर रत्नकीति एवं मुदचन्द्र इसी युग के कवि थे। वे दोनों ही भट्टारक सुशोभित थे। समाज के श्राध्यात्मिक उपदेष्टा थे । स्थान स्थान पर बिहार करके जन जन को सुपथ पर लगाना ही उनके जीवन का ध्येय था। स्वयं का एक बड़ा संघ था जो शिष्य प्रशिष्यों से युक्त था। लेकिन इतना सब होते हुये भी उनके हृदय में साहित्य सेवा की प्यास थी और उसी प्यास को बुझाने में लगे रहते थे । जब देश में भक्ति रस की धारा बह रही हो। देश की जनता उसमें झूम रही हो तो वे कैसे अपने आपको अछूता रख सकते थे इसलिये उन्होंने भी समाज में एक नेभि राजुल के नये युग का सूत्रपात किया। राधा कृष्ण की भक्ति गीतों के रामान गीतों का निर्माण किया और उनमें इतनी अधिक सरलता, विरह प्रवशता एवं करण भावना भर दी कि समाज उन गीतों को गाकर एक नयी शक्ति का अनुभव करने लगा । जैन सन्त होते हुए भी उन्होंने अपने गीतों में जो दर्द भरा है, राजुल की विरह वेदना एवं मनोदशा का वर्णन किया है। वह सब उनकी काव्य प्रतिभा का परिचायक है । जब राजुल मन ही मन नेभि से प्रार्थना करती है तथा एक घड़ी के ( xii )
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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