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हारक रकीति एवं कुमुवचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस प्रकार कवि की सभी लघु रचनायें हैं तथा सामान्य शैली में निबद्ध है । पीहर सासरा गीत रूपात्मक गीत है। जो बहुत सुन्दर है तथा मानव स्वभाव को प्रकट करने वाला है इसलिये पूरा गीत पाठकों के रसास्वादन के लिये यहाँ दिया जा रहा है-
सन्मति शिव यति प्रणमीनि, भजी बली भगवती माय रे । Free पीहर भले गायस्यु, बेह गातां पातिग जाय रे । संसार सासद माँहि दोहिल, सोहिल नहीय लगार रे । शिवपुर पीहर सास्वतु. जिहा नहीं मोह सासरो मदि मलय तो, माया रे कुमत नणंदडी सखि नित दये, नमी तेहा संयम पिता हमारे प्रति भलो, दया रे माता धर्म बांधव दश शोभता, सुमति बहेन
सुखनो पार रे ।। १ ।। सासूडी कलंछ रे ।
मार्ग पट पीठरे ॥ २ ॥
मशसार रे ।
भवतार रे ॥ ३ ॥
मदन महाभट नाहलो, रति बधूस्यू कीडे अज्ञान क्रोध जेठ करे पेखणा, राग द्वेष देवर मोडि मान
सयल फ्रुटंब तप व्रत तथो, सहयकारी सबै शील आभरण अंगि उपता, पुण्य फले सुख असंयम फुटंब अलखा मणू, षामणु दीरो बहु पाप पदारथ सासरु नहीं, एक घड़ी सुख
रे ।
रे ॥ ४ ॥
परिवार रे
भंडार रे ॥ ५ ॥
रौद्र
रे ।
निद्र रे ।। ६ ।।
सखी एहवा पीहर मलजई, तहां रे जावान् बहू कोड देवना पाढा किमनी गमू, कहींद होते
संसार सारडे मून्हे नवि गमे, भमि मन विविध वेष घरी दुख सहिया, भूमि भूमि देवगुरु श्रमचन्द सेवता, संसार सुगति पीहर प्राणि पारसद कहे ब्रह्मरुचि संत रे ॥ ९ ॥
साहारा होसे अंत है ।
रे । तेहनो मोड रे ॥ ७ ॥
पीहर मझारि रे ।
अनंत संसार रे ॥ ८॥
ब्रह्मरुचि ने अभयचन्द्र के गुरु कुमुदचन्द्र एवं दादागुरु ज्ञानभूषण का उल्लेख भी नहीं किया है इसलिये ऐसा लगता है कि इनका उदय भटूटाक कुमुद्रचन्द्र के पश्चात हुआ होगा ।