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________________ . श्रीपाल २०. बाहुबलीनी विनती २१. नेमिनाथनी नीत २२. बीस विरहमान बिनती २३. घृत कल्लोनी बिनती २४. आदिनाथनी धमाल २५. भरतेरवानगीत २६. गोत २७, गीत २६. भरतेश्वरनु गीत २९. गुभयन्द्र हमची २०. गुवली इना, रचनाओं में अधिकाण रचना लय रचनायें हैं जिनस ववि की साध्य रचना में गहरी झवि होने वा गमित्रा मिलता मात्र ही में जसव. भट्टारकों का परम भक्त होने का मत भी मिलता है । ६.वि की गबसे बड़ी रसमा उपासवाध्यन है। इसे इसने संत्र। १३४२ में सूरतगर में नात थी। में श्रावकाचार का वर्णन मिलता है। इसकी रचना सघाति गपानी के पठनार्थ की गयी थी जैसा कि निम्न प्रशस्तिो ज्ञरा होता है-- पति श्री उपरा काय यनारयाने पं० श्री श्रीपाल विरचित संचपति रामाजी नामपिते श्री श्राद कापागनिधाना प्रबन्ध भामाशः।। ___qfण्डत थोपाय . समय गृति पर जंग धर्म का प्रमुख वेन्द्र था। वहां पर. पासपूज्य स्वामी का मन्दिर था जहां पर बैठकर दि ने उपासकाध्ययम का लखन समाप्त किया थः । मुन्दर सूरति सहेर महार, सोभित श्री तिन भुवन मझार | जिन र वद्ध दौठइ मन मोक्ष.ई. कनक कालस ध्वज तारण सौन्हें । वामपूज्य तणुक बिमाल, या, रचना रची रग त्साल । श्रावकाचार में श्रावक धर्म का वर्णन किया गया है। श्रीपाल ने अवारका नीति, अभय चन्द्र, शुभ र.न्द्र एव रत्न चन्द्र की पसा के रूप में जो पद लिखे है वे प्राधिक महाबपूर्ण है । इन पदों से भट्टारको
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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