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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
श्रीपाल भट्रारक परम्परा के कट्टर समर्थक थे। उन्होने भट्टारक रस्मकीर्ति, की प्रशंसा में एक गीत, भट्टारक अभय चन्द्र की प्रशंसा में दो गीत, भ. शुभ चन्द्र की प्रशेमा में पांच गीत तथा भ. रत्नचन्द्र की प्रशंसा में तीन गीत लिखे हैं । इन गीतों में भट्टारकों के लावषय मय शरीर की तो प्रशंसा की ही है साथ में उनके अध्ययन की, प्रभाव की एवं महानता की भी प्रशंसा की गयी है। इन गीतों में भटारकों के माता पि: " नाम भी गिना होगसिकं मिली है जिनमें प्रात: उठकर मदारकों के दर्शन करने तथा उनकी मुमाानुवाद करने, नगर में विहार करने पर उनका जोरदार स्वागत कार की प्रेरणा दी गयी है। इन गीतों में भटटारकों का ऐतिहासिक वर्णन तो मिलता ही हैं साथ में उनकी लोकप्रियता का भी पता चलता है।
पं० श्रीमान के प्रलं तक ३० गीत मिले हैं जो उनके साहित्य प्रम के द्योतक हैं। उनकी अब तक उपलब्ध रचनायें निम्न प्रकार है
१. उपायकाध्ययन २. शांतिनाथनु भवान्तर गीत ३. रस्मकीति गीत (मराठी) ४. गीत ५. बलिभद स्वामिना चन्द्रावली ६. अभयचन्द्र गीत ७. रतनचन्द्र गीत ८, रतनचन्द्र मीत १. रतनचन्द्र गीत १०. शुभचन्द्र गीत ११. शुभचन्द्र गीत १२. शुभनन्द्र गीत १३. प्रमालि १४, प्रमाति १५. प्रभाति (अभयचन्द्र) १६. प्रभाति (गुमचन्द्र) १७. प्रभाति १८. संववई हो रजो गीत १६. गीत