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________________ मरतेश वैभव २५३ः इस प्रकार मोहके कारणसे लोक भरतेश्वरके मुक्ति जानेपर दुःख समुद्र में गोते लगा रहे थे। उधर मोक्ष साम्राज्यमें अमृतकान्ताके बीच भरतेश्वर जो आनन्द भोगमें मग्न हुए, उसका भी वर्णन करना इस प्रसंगमें अनुचित नहीं होगा। प्रतिदिन शृंगार पाकर अपनी आत्माको देखते हुए उस भरतेश्वरने कर्मीका नाश किया, इसलिए उसका नाम शृंगारसिद्ध ऐसा प्रसिद्ध हुआ। __ शृंगारसिद्ध भरतेश्वर जब मोक्षस्थानमें पहुंच रहे थे उस समय मुक्तिलक्ष्मीको दूतियोंने आकर उसे खबर दिया। वह मुक्तिलक्ष्मी एकदम अपने पलंगसे उठकर खड़ी हुई। उसे आनन्दसे रोमांच हुआ। मुक्तिलक्ष्मीको खबर देनेवाली दूतियां क्षमा व विरक्ति नामकी थीं। अपने पतिके आनेका सुन्दर समाचार इन दुतियोंने दिया, इसलिए मुक्तकांतीने उनको आनन्दसे आलिंगन दिया एवं विशेषरूपसे सरकार किया। बाद अपने वीर पतिके स्वागतके लिए वह अपनी सखियोंके साथ आगे बढ़ो । भरतेश्वर सदृश्य शृङ्गारसिद्धको वरनेके लिए एवं उस शिकारको अपने वश करने के लिए वह बहुत दिनोंसे प्रतीक्षा कर रही थी। अब जब वह पीर स्वयं इसके साथ सामना करने के लिए आ रहा है तो उसे आनन्द क्यों नहीं होगा? वह हंसती हुई आगे बढ़ी, उस समय आनन्दसे फूली नहीं समा रही थी। सहिष्णुता, शांति, कांति, सन्मति, ऋषि, बुद्धि नामक पवित्र देवियोंने छत्र, चामर, दर्पण, कलश आदि मंगल द्रव्योंको हाथमें लिया है, उनके साय यह मुक्तिलक्ष्मी भरतेश्वरके स्वागत के लिए आ रही है। __ शृङ्गार प्राप्त विद्यादेवियों आगेसे शृङ्गारपदोंको गा रही है। साथ हो शृङ्गाररसकी वर्षा करती हुई वह मुक्तिदेवी आ रही है । कल्याणदेवियों वेणुवीणाको लेकर स्वरमंडलके साथ मंगल पदोंको गा रही हैं। उनके अनेक सम्मानपूर्ण वचनोंको सुनतो हुई वह आगे बढ़ रही है। उस मुक्तिलक्ष्मीके साथ अणिमादि सिद्धिको प्राप्त देवियां भी हैं। उनमेंसे कोई मुक्ति देवीकी वन्दना कर रही है तो कोई चरणस्पर्श कर रही है, कोई आभूषणोंको व्यवस्थित कर रही है, इस प्रकार बहुत आनन्दके साथ वह आ रही है । उसको बोल, उसकी चाल आदि मानन्दमय है, परिवारदेवियां कानमें कह रही हैं कि तुम्हारे पति बहुत बुद्धिमान हैं, कुशल हैं । इन सब बातोंको सुनकर वह प्रसन्न हो रही है। उसके चरणकमलोंकी कांति तो तीन लोकमें व्याप्त होती है, और
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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