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________________ २५० भरतेश वैभव भाई ! हम तो बहुत दु:खी हुई, हमारे उदर में तो तुम अग्निको ही प्रज्वलित कर चले गए। इस प्रकार जमीन पर लोट-लोट कर रो रही थी । सहोदरियोंका दुःख क्या कम होता है ! भरतेश्वरकी थे दोनों मानी हुई बहिनें थीं। भाई ! तुम तो अपूर्वं थे, विद्वानोंके लिए मान्य थे, अखि यमनको प्रसन्न करनेवाले राजा थे। ऐसी हालत में तुमने हमको इस प्रकार दुःखी कर एक तरह से हमारी हत्या ही की है। भाई ! हमारे साथ तुम्हारा प्रेम क्या कम था ? हम रास्तेमें रोकती तो तुम रुकते थे, प्रेमसे तुम्हारे दुपट्टेको खींचती, हमारी बातको तुमने कभी टाली ही नहीं, ऐसी हालत में आखिरतक हमारे साथ न रहकर जाना क्या तुम्हारे लिए उचित है ? पट्टरानीके प्रेमको तुम भूल गए, सहोदरियों की भक्तिको भी तुम भूल गए। इस प्रकार हमें मार्ग में डालकर जाना क्या योग्य है ? भूलोककी संपत्ति आज नष्ट हो गईं। पोहर जानेकी अभिलाषा भी अदृश्य हो गई। हम लोग तो पापी हैं, हमारे सामने तुम कैसे रह सकते हो। तुम्हारी सब बातें दर्पणके समान हैं। इस प्रकार गंगादेवी सिंधुदेवीका रोना उधर चल रहा था, इधर भरतेश्वर की पुत्रियाँ भी दुःखसे मूर्च्छित हो रही हैं । पिताजी ! क्या हम लोगोंको यहाँपर छोड़कर तुम लोकाग्रभाग में चले गए ? हाय ! इस प्रकार दुःखसे विलाप कर रही थीं, जैसे कोई बालक गरमागरम घी भूलसे पी गया हो। पुत्र, पुत्रवधुएं एवं अपनी स्त्रियोंको लेकर तुम चले गए। एक तरहसे हमारे पोहरको तुमने बिगाड़ दिया । षटुखंडाधिपति ! क्या यह तुम्हारे लिए उचित है ? स्वामिन्! किसी भी कार्य में तुमने आजतक हमें भूला नहीं तो आज इस कार्य में क्यों भूल गए ? हाय ! दुर्देव है । इस प्रकार बत्तीस हजार पुत्रियोंने विलाप किया। इसी प्रकार भरतेश्वर के ३२००० जामाता और हजारों श्वसुर भी जहाँ तहाँ दुःखी हो रहे थे। इतना ही क्यों ? बाहुबलिके तीन पुत्र भी दुःख से मूर्च्छित हुए। फिर उठकर बारम्बार चिन्तित होने लगे। चलो ! दीक्षावनमें स्वामीको देखेंगे, इस विचारसे चलने लगे तो समाचार मिला कि ये मोक्ष चले गये हैं, फिर वहींपर पक्षभग्न पक्षोके समान गिर पड़े । फिर विलाप करने लगे कि हाय ! पिताजी ! हम तो दुर्दैवी है। आप हमारी चिन्ताको छोड़कर इस प्रकार चले गये । कुछ समय बाद जाते तो आपका क्या बिगड़ जाता था ? इतनी जल्दीकी क्या आवश्यकता
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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