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________________ २२७. भरतेश वैभव भरतेशको आत्मा बहिरात्मा नहीं है, अन्तरात्मा था । परंतु शीघ्र ही वह परमात्मा बन गया । अध्यात्मको महिमा विचित्र है। राजवेभवको छोड़कर योगी बननेपर भी राजवैभवने क्षात्रधर्मने भरतेशका साथ नहीं छोड़ा। वह तेजस्वी है, वहाँपर उसने कौकी सेना के साथ वीरतासे युद्ध करना प्रारंभ किया। अश्वरत्न वहाँपर नहीं है, परन्तु मनरूपी अश्वपर आरूढ़ होकर ध्यान खड्गको अपने हाथ में लिया एवं कर्मरूपी प्रबल शत्रुपर उस वीरने चढ़ाई को युद्ध प्रारम्भ होते ही तीन आयुष्यरूपी योद्धा तो रुक गये। अब उस वीरने अपने घोड़ेको आगे बढ़ाया तो अग्निके प्रतापसे पिघलनेवाले लोहेके समान कुति आदि १५ दुष्ट कर्म गलकर चले गये । ____ आगे बढ़नेपर ८ कषाययोद्धा पड़े । नपुंसकवेद और स्त्रीवेद तो जरा से धमकानेपर इधर-उधर भागे । वीरका खक्ष्म सामने मानेपर स्त्री. नपुंसक कैसे टिक सकते है ? इतने में वह बीर और भी आगे बढ़ा तो अरति शोकादिक छह नोकषाय निकल भागे । और भी आगे बढ़नेपर पुंधेद भी नहीं ठहर सका, उस पराक्रमीका कौन सामना कर सकता है ? उसके बाद संज्वलन-क्रोध, मान, मायाने मुंह छिपाकर पलायन किया तो केवल संज्वलन-लोभ शेष रह गया है। वहाँसे आगे बढ़कर उस लघुलोभका भी अन्त किया । उसी समय मोहराक्षसको लात देकर उस वीरयोगीने विजयको प्राप्त की। ज्ञानावरणीयके चार प्रकृतियोंका अन्त पहिलेसे हो चुका है, अवधिज्ञानावरणीयका भी पहिलेसे अंत हो चुका है। अब बचे हुए धूर्तकौको भी में मार भगाऊँगा, इम संकल्पसे आगे बढ़ा। ध्यानखड्गके बलसे प्रचला व निद्राका नाश किया। साथ में पंचांतराय व दर्शनावरणके शेष प्रकृतियोंको भी नष्ट किया । इसनेमें ६३ कर्मप्रकृतिरूप प्रतिभट करनेवाले योद्धा हट गये। अब वह वीर अन्तरात्मा नहीं रहा, परमात्माका वैभवं यहां दिखने लगा है ! अब यह धीर मुनि नहीं है, जिन बन गया है। चित्त वाहन था, ध्यान खड्ग पा, और उस मुनिने मारा भगाया इत्यादि जो वर्णन किया गया है वह कल्पनाजाल है, वस्तुतः उस मुनि राजके स्वयं अपनी आत्माको देखनेपर कर्मकी निर्जग हुई, यही उसका सार है । वर्णन करने में ही विलम्ब लगा, परन्तु उस कर्मनिर्जराके लिए अन्तर्मुहूत ही समय लगा है । उस परमात्मयोगीकी सामर्थ्यका क्या वर्णन करें।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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