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________________ २२० भरतेश वैभव कभी-कभी समयको जानकर भरतेश्वर ९६ हजार स्त्रियोंको कोड़ामें रत होकर उनको नप्त करते हैं एवं गुप्न होते हैं ! भरत मर्म रानोवासमें ३२०७० विद्याधर स्त्रियाँ हैं, ३२००० भूमिगोचरी स्त्रियाँ हैं, एवं ३२००० म्लेच्छभूमिको स्त्रियाँ हैं । इस प्रकार ९६००० देवियाँ हैं । सब स्त्रियोंको एक-एक सन्तान है। परन्तु पट्टरानीको कोई सन्तान नहीं है । इसलिए उसके शरीरमें प्रसक्रियाजन्य हानि नहीं होती है। उसका सौन्दर्य ज्योंका त्यों बना रहता है । अतएव भरतेश्वरको पट्टगनीमें ही मधिक सुख मालूम होता है | योनियोंके भेद जो कहे गये हैं उन सबमें -सन्तान की उत्पत्ति होती है, परन्तु शंखयोनिमें सन्तानको उत्पत्ति नहीं होती है । वह पट्टरानी शंखयोनोको है । उसे प्रसववेदनाका दुःख नहीं है, यह महान सुखी है। सभी स्त्रियोंके साथ कोड़ा करनेपर भी पट्ट रानीके साथ क्रीड़ा न करनेपर उस सौर्वभौमको तृप्ति नहीं होती है । लोककी सर्व सम्पत्ति एक तरफ, वह सन्दरी एक तरफ । इतनी अद्भुत सामर्थ्य उस सुभद्रादेवीमें है | षटखंडके समस्त पुरुषों में जैसे चक्रवर्ती अग्रणी हैं, उसी प्रकार षट्खंडको समस्त स्त्रियोंमें वह पट्टरानी अग्रणी है । जैसे देवेन्द्रको शची, धरणेद्रको पद्मावती प्राप्त हई, उसी प्रकार पट्टा रानी भरतेश्वरको प्राप्त है । पट्टरानी आदिको लेकर ९६००० रा.नयों के साथ सुखको अनुभव करते हुए बहुत समय व्यतीत किया । स्त्रियों के शरीरमें कुछ शिथिलता आती है, परन्तु भरतेशके शरीर में तो जवानी ही बढ़ती जाती है । पवनाभ्यास, योगाभ्यास व ध्यानमार्गको जानकर जो सदाचरणसे रहते हैं उनके शरीर का तेज कभी कम नहीं होता है। रोग भी उनको नहीं छ्ता है, एवं नवयौवन ही बढ़ता जाता है, प्राणवायु व अपानवायुको वे वशमें करते हैं। एवं वीणानादके समान नित्य हंसनाथका दर्शन करते हैं, उनको यह क्या अशक्य है ? इस प्रकार ध्यान, योग व वायुधारणकी सामर्थ्यसे काली मछोसे शोभित होते हए २७.२८ वर्षके जवानके समान वे सदा मालूम होते हैं। जिन स्त्रियोंपर जरा बुढ़ापेका असर हआ उनको मंदिरमें ले जाकर आयिकाओंसे वृत्त दिलाते थे एवं उनके पास ही उनको छोड़ते थे एवं भरतेश नवीन व जवान स्त्रियोंके साथ आनन्द करते थे। बूढ़े घोड़ेको हटाकर नवोन-नवीन धोड़ेका उपयोग जिस प्रकार किया जाता है, उसी प्रकार बूढ़ी लियोंको मंदिर में भेजकर जबान स्त्रियोंसे विवाह कर लेते थे। वे स्त्रियां स्वयं सम्राट्को जवानी व अपने बुढ़ापेको देखकर लज्जित
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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