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________________ २१८ भरतेश वैभव विश्वकर्मा कर रहा है। स्नानगृह, भोजनगृहकी व्यवस्था गृहपतिके हाथमें है । भरतेश आत्मयोगमें हैं । भरतेशके सेवक बाहिर दरवाजेपर पहरा देते हैं, तो सम्राट् अपनी रानियोंके साथ आनन्दसे सुवर्णके महल में निवास करते हैं । सौनंदक, खड्ग व सुदर्शन, शत्रुके अभावको सूचित करते हैं तो दण्डरल पर्वतको भी चूणित करनेको तैयार हैं । इस प्रकार भरतेश्वर निरातक होकर राज्यवैभवको भोग रहे हैं। ___ सेनाको आनेवाली ऊपर व नीचेकी आपत्तिको छत्र व चर्मरत्न दूर करते हैं । सम्राट् अपने नगरमें अखण्ड लोलामें मग्न हैं। चिंतामणि रल चितित पदार्थको प्रदान करनेवाला है इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण नवनिधि है। गुफामें भी प्रकाश करनेवाला काकिणी रत्न है । फिर महलमें भरतेश्वर सुखी हों, इसमें आश्चर्य क्या है। बारह कोसतक कूदनेवाला छोड़ा है, उत्तम हस्तिरत्न है, परिपूर्ण इन्द्रियसुखको प्रदान करनेवाला स्त्रीरत्न है। फिर भरतेश्वरके आनन्दका क्या वर्णन करना है? असि, दण्ड, चक्र, काकिणि, छत्र, चर्म व चितामणि ये सात अजीव रत्न हैं, विश्वकर्मा, मंत्री, सेनापति, गृहपत्ति, स्त्रीरत्न, अश्वरत्न व गजरत्न ये सात जीवरत्न हैं। सम्राट्के भाग्यका क्या वर्णन करें ? चौदह रल, ननिहित हैं, अपार सेना है। उनका सामना कोन कर सकता है। अत्यंत आनंदमें हैं। तीन समुद्र, और हिमवान् पर्वततकके प्रदेशमें स्थित प्रजायें बार-बार उनकी सेवामें उपस्थित होती हैं । शूर वीरगण भरतेश्वरकी सेवा करते हैं, स्वयं भरतेश विलासमें मग्न हैं। रोज जलक्रोड़ा, विवाह, मंगल आदिका तांता लगा हुआ है। क्षाम, दुष्काल, आग, उत्पात, पूर वगैरहको कोई बात ही भरतेशके देशोंमें नहीं है। चोटो पकड़नेका कार्य वहाँ कामकोंमें है, सज्जनों में नहीं है। किसीको मारनेकी क्रिया शतरंजके खेलमें है मनुष्यों में नहीं है। बोल व घालमें च्युत होनेकी किया वहाँपर विरही जनों में पाई जाती थी, परन्तु लोग अपनी वृत्ति में कभी वचनभंग नहीं करते थे। जैसा बोलते वेसा चलते थे। दण्डका ग्रहण वहाँपर वृद्ध लोग करते थे, किसीको मारनेपीटनेके लिए दण्डका उपयोग वहां कोई नहीं करते थे। जड़ता (आलस्य) वहींपर कामसेवनके अन्त में व निद्रामें थी, परन्तु लोगोंमें आलस्यका लेश भी नहीं था । प्रत्येक नगरमें प्रजायें सुखमे अपने समयको व्यतीत करतो हैं। जगह-जगह शास्त्राभ्यासके मठ, ब्राह्मणोंके अग्रहार बने हुए हैं, जहाँ मंत्र पाठ वगैरह चल रहे हैं । गंधकुटीका विहार वहाँ बार-बार आता है और चारणमुनियोंका भी आगमन वहाँपर बारम्बार होता है । एवं उस सुखमय राज्यमें उत्तम जातिके घोड़े व हाथी उत्पन्न होते रहते थे । जहाँ
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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