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________________ भरतेश वैभव सामर्थ्य हमें प्राप्त हो, इस भावनासे सब देवताओंने उस होम भस्मको कंठ, ललाट, हृदय, बाहु आदि प्रदेशोंमें धारण किया । इस प्रकार देवेन्द्र ने भक्तिसे अन्तिम कल्याणका महोत्सव किया । देवगण हषसे फूले न समा रहे थे। हम लोगोंने पंचकल्याणमें योग दिया है । अब हमें मुक्तिकी प्राप्ति ही हो गई, इसमें कोई सन्देह नहीं है, इस प्रकार कहते हुए देवगण आनन्दके समुद्रमें डुबकी लगा रहे थे। - देवेन्द्रने तो नृत्य करना ही प्रारम्भ किया, आयो ! आओ रम्भर ! आओ तिलोत्तमा इत्यादि अप्सराओंको बुलाकर सुरगान, लयके साथ देवेन्द्र अब नृत्य करने लगा है। एक दफे उन देवांगनाओंके साथ, एक दफे स्वयं अकेला, बहुरूपोंको धारण कर रहा है । पर्वतपर आकाशपर, एक दफे शिर नीचा कर, पेरको ऊपरकर नृत्य कर रहा है, लोग आश्चर्यचकित हो रहे हैं । नृत्यकलाका अजीब प्रदर्शन ही वहां हो रहा है । "मेरे स्वामी मुक्तिको गये हैं, इसलिए मुझे नृत्य करनेको अनुरक्सि हुई एवं उनके चरणोंको भक्ति ही मुझे नृत्य करा रही है।" इस बातको व्यक्त करते हुए बहुत आसक्ति से नृत्य कर रहा है । नृत्यक्रियासे निवृत्त होकर देवेन्द्र ने गणधरोंको वन्दना कर धरणेद्र, ज्योतिष्क आदि देवोंको विदा किया एवं स्वयं शपी महादेवोके साथ स्वर्गलोकके प्रति चला गया। माघ कृष्ण चतुर्दशोके रोज भगवान् आदिप्रभुने मोक्षधाम प्राप्त किया । उस दिन रात्रिदिनके भेदको न करते हुए लोकमें सर्वत्र आनन्द ही आनन्द छा गया । भगवान् आदिप्रभुको जिन भी कहते हैं, शिव भी कहते हैं । इसलिए उस रात्रिका नाम जिनरात्रि या शिवरात्रि पड़ गया । और लोकमें माघ कृष्ण चतुर्दशीको शिवरात्रिके नामसे लोगोंने प्रचलित किया। __ भरतेश्वर सातिशय पुण्यशाली हैं । जिन्होंने तीर्थकर प्रभुके मोक्ष साधनके समय अपूर्व वैभवसे पूजा को, जिस पूजावैभवको देखकर देवेन्द्र भी विस्मित हुआ तो सार्वभौमके पुण्यका क्या वर्णन हो सकता है ? आदिप्रभुके मुक्ति सिधारनेके बाद थोड़ासा दुःख जरूर हा । परन्तु विवेकके बलसे उसे पुनः शतिकर सम्हाल लिया । ऐसे ही समय विवेक काममें भाता है । एवं महापुरुषोंका यही वैशिष्ट्य है । भरतेश्वर परमात्माको इसलिए निम्न प्रकार आराधना करते हैं। हे चिदम्बरपुरुष ! गुणाकर ! आप क्रमसे धीरे धीरे आकर मेरे अंतरंग सदा बने रहो।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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