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________________ भरतेश वैभव राजाके हाथ लगनेपर तृण भी पर्वत बन जाता है। यह लोकोक्ति असस्य कैसे हो सकती है ? वह बालक सम्राटको सेनाका अधिपति बना, पुण्यवंतों के स्पर्शसे मिट्टी भी सोना बन जाती है। ___ आनन्दके साथ कुछ काल ध्यतीत हए । एक दिन रात्रिके अन्तिम प्रहरकी बात है । भरतेश्वरने एक स्वप्न देखा जिसमें उन्होंने मेरू पर्वत को लोकाग्र प्रदेशपर उड़ते जानेका दृश्य देखा । 'श्री हंसनाथ' कहते हुए भरतेश्वर पलंगसे उठे। पासमें सोई हुई पट्टरानी भी घबराकर उठी व कपित हो रही थी । कारण उसने उसी समय स्वप्नमें भरतेश्वरको रोते हुए देखा था । वह सुंदरो भयभीत होकर कहने लगो कि स्वामिन् ! मैंने बड़े भारी कष्टदायक (अशुभ ) स्वप्नको देखा । तब भरतेश्वरने कहा कि देवी ! घबराओ मत ! मैंने भी आज एक विचित्र स्वप्न देखा है। यह कहते हुए तत्क्षण उन्होंने अवधिज्ञानसे विचार किया व कहने लगे कि देवी ! वृषभेश्वर अब शोन हो मुक्ति जानेवाले हैं । इसकी यह सूचना है। तब रानीने कहा कि हमें अब कौन शरण है। उत्तरमें भरतेश्वर कहते हैं कि हमें अपना हसनाथ ( परमात्मा ) हो शरण है । उनके समान ही अपनेको भी मुक्ति पहुंचना चाहिये। यह संसार हो एक स्वप्न है। इसलिए उसमें ऐसे स्वप्न पड़े तो घबरानेकी क्या जरूरत है ? इस प्रकार पट्टरानो को सांत्वना देते हुए कैलासपर्वतके प्रति अवधिदर्शनका प्रयोग किया। वहीं पर नरनाथ भरतेश्वरने प्रत्यक्ष पुरुनायका दर्शन किया अब आदिप्रभु समवशरणका त्याग कर चुके हैं। उसो पर्वत पर निर्मल शिलातलपर विराजमान हैं । पूर्वदिशाकी ओर मुख बनाकर सिद्धासनमें विराजमान हैं । भरतेश्वरने समझ लिया कि अब चौदह दिनमें ये मुक्ति सिधारेंगे । उसो समय सभामें पहुंचकर सबको वह समाचार पहुंचाया। युवराज, मंत्री, सेनापति व गृहपतिने भी रात्रिको एक-एक स्वप्न देखा था, उन्होंने भी सभामें निवेदन किया। सम्राट्ने कहा कि इन सब स्वप्नोंमें आदिप्रभु के मोक्ष जानेको सूचना है। इस प्रकार भरतेश्वर बोल हो रहे थे, इतने में विमानमार्गसे आनन्द' नामक एक विद्याधर आया । उन्होंने वही समाचार दिया, तब भरतेश्वरके ज्ञानके प्रति लोगोंने आश्चर्य किया। सम्राट्ने सर्व देशोंमें तुरन्त खलोता भेजा कि अब भगवंतको पूजा महावैभवसे चक्रवर्ती करेंगे। इसलिए सब लोग अपने राज्यसे उत्तमोत्तम यूजादों को लेकर आवें । मेरो बहिनें अपने नगरमें हो रहें। गंगादेव, सिंधुदेव आर्वे । नमिराज, विनिमिराज, भानुराज आदि सभी बावे मेरे दामाद सभी कैलास पर्वतपर पहुंचे। मेरी पुत्रियो यहाँपर महलमें आकर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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