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भरतेश वैभव अतुल सामथ्र्य का ही प्रभाव है। इसलिए वे सदा इस प्रकारको भावना करते हैं कि:
हे चिदंबरपुरुष ! आप संसारके दुःखको दूर करनेवाले हैं। सद्गुणको वृद्धि करनेवाले हैं। हे निर्मलज्ञानांशु ! मेरे हृदय में अंशरूपमें तो आप विराजमान रहें।
हे सिद्धात्मन् ! अणिमादि महद्धियोंको तृणके समान समझकर आठ सद्गुणोंको प्राप्त करनेवाले लोकदर्पण ! आप मुझे सन्मति प्रदान कीजिए।
इति कुमारवियोग संधिः
पंचश्वर्य संधिः
रानियोंके दुःखको शान्तकर भरसजी दीक्षित-पुत्रोंको देखने के लिए दसरे ही दिन कैलास पर्वत पर पहुँचे । एक पिताका हृदय कैसे रुक सकता है ? युवराजको आदि लेकर बहुतसे पुत्रोंको साथमें लिया एवं पचन (आकाश) मार्गसे चलकर समवशरणमें पहुँचे । वहाँपर द्वारपालक देवोंकी अनुमति लेकर अन्दर प्रविष्ट हुए | भगवंतका दर्शन कर साष्टांग नमस्कार किया एवं दुरितरि, दुःखसंहारि, पुरुनाथ, आपकी जयजयकार हो, इत्यादि शब्दोंसे अपने पुत्रोंके साथ स्तोत्र किया। मुनिराजोंकी वन्दना करते हुए नूतन दीक्षिप्त यतियोंकी भी वंदना की। उन मुनिराजोंने आशीर्वाद दिया । यहाँपर दुःखका उद्रेक किसीको भी नहीं हुआ, आश्चर्य है। महल में दुःख हुआ, परन्तु समवशरणमें दुःखकी उत्पत्ति नहीं हुई। यह जिनमहिमा है। इसी प्रकार बुद्धिसागरमुनि, मेघेश्वरमुनिकी भी वहाँ उन्होंने बन्दना की । उनको देखकर हर्षसे सम्राट्ने कहा कि संसारको आपने जीत लिया, धन्य हैं ! तब उन लोगोंने उत्तरमें कुछ भी न कहकर केवल आशीर्वाद दिया।
इसी प्रकार भक्तिसे सबकी वन्दना कर भरतेश्वर अपने पुत्रोंके साथ आदिदेयके पासमें माकर बैठ गये।