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- भरतेश वैभव गर्मी, पर्वत, मेघ, शरीर, आमला मधुर, कड़वा, चरपरा, लाल, पीला, काला, सफेद वगेरह सभी पुद्गल है । रत्नहार, कंकण, नथ, हार, वगैरह भाभरण, धन, कनक, पोतल, ताम्र, चाँदी वगैरह सर्व पुद्गल है।
बडे घड़े में जिस प्रकार पानी भरा रहता है उसी प्रकार लोकमें यह पुद्गल भरा हुआ है । समुद्र में जिस प्रकार मछलियां रहती हैं उस प्रकार वहाँ जीवगण विद्यमान हैं।
पूर्वमें कह चुके हैं कि तीन पुद्गल दृष्टिगोचर हाते हैं । और तीन नहीं होते हैं । जो दृष्टिगोचर नहीं होते हैं वे सर्वत्र भरे हुए हैं। उनके बीच जीव छिपे हुए है।
पर्वत, वृक्ष, भित्ति आदि जो पुद्गल हैं वे चलनेवाले जीवादिकोंको रोकते हैं । परन्तु परमाणु अणु तो अत्यन्त सूक्ष्मपुद्गल हैं। वे किसीको भी आघात नहीं करते हैं।
घभादि चार द्रव्य तो कुछ हो न नहा कहते हुए मौनसे रहते हैं परन्तु जीयपुद्गल तो आपसमें लड़नेवाले पहलवानोंके समान हैं।
उनका बिलकुल सम्बन्ध नहीं है, यह नहीं कह सकते, परन्तु काल द्रव्य जिधर कर्म जाता है उधर चला जाता है । पुद्गलकी परिणतिके लिए यह कारण है। इसलिए मालम होता है कि उसके ही निमित्तसे जोव पुग़लोंका व्यवहार चल रहा है। ___ इसलिए जीप पुद्गल व काल इन तीन द्रव्योंको अनादि कहते हैं। नहीं तो जबकि छह ही द्रव्य अनादि हैं तो तीन हो द्रव्योंमें यह भिन्नता क्यों आई ? इसलिए लोकमें इस बातकी प्रसिद्धि हुई कि कर्म आरमा व काल ये तीन पदार्थ अनादि हैं। और उनके हो निमित्तसे धर्म, अधर्म व आकाश कार्यकारी हुए। इसलिए वे आदि वस्तु हैं, ऐसा भी कोई कहते हैं।
इन सर्व द्रव्योंके यथार्थ स्वरूपको कैवल्यधाममें स्थित सिद्ध परमेष्ठी वस्तुस्वभाव समझ कर प्रत्यक्ष निरीक्षण करते हैं। मोक्ष जीवद्रव्यके लिए हो प्राप्त हो सकता है । पुद्गलके लिए मुक्ति नहीं है । क्योंकि वह अजीव तत्व है। इस बातको तुम निश्चयसे जानो।
मन वचन, कायके परिस्पंद होनेपर वह अत्यन्त सूक्ष्म कार्माणरज अंदर आत्म प्रदेशमें आकर प्रविष्ट होते हैं उसे आस्रव बंध कहते हैं।
जिस प्रकार जहाजमें छिन्न होनेपर अन्दर पानी जाता है, उसी प्रकार