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________________ भरतेश वैभव १४७ पंक्तिबद्ध होकर यदि लोकके ममस्त जीव खड़े हो जायें लोकका स्थान पर्याप्त नहीं है। पुद्गलद्रव्य तो उससे भी अधिक स्थूल है । इसी प्रकार काल द्रव्य, धर्म अधर्म आकाशमें सर्वत्र भरे हुए हैं। जिस प्रकार दूधके एडेमें मधुको भर दिया जाय तो वह उसमें ममा जाता है । उसी प्रकार आकाश व्यके सोचमें बाकीके द्रव्य समा जाते हैं। गूढ़ नागराजके बोच छिपे हुए गढ़निधिके समान तीन गाढ़ वातके यो च ये छह द्रव्य छिपे हुए हैं। एक परमाणु जितने स्थानमें ठहर सकता है उसे एक प्रदेश कहते हैं । पुद्गल संख्यात, असंख्यात, अनंत व अनंतानंत प्रदेशी है । आकाश अनंत प्रदेशी है । जीव, धर्म व अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेशी हैं। हे भव्य ! काल द्रव्य के लिए एक ही प्रदेश है। काल द्रव्यका प्रदेश अत्यंत अल्प है, क्योंकि यह एक ही प्रदेशको घेरकर रहता है अतएव वह काय नहीं है। बाकी पाँच द्रव्य अस्तिकायके नामसे कहलाते हैं। ____ गुण, पर्याय, वस्तुत्व इन तीन लक्षणोंसे काल द्रव्यको छह द्रव्यों में शामिल किया है परन्तु काल द्रव्य एक प्रदेशी है, अनेक प्रदेशी नहीं है। इसलिए अस्तिकाय पांच ही हैं। हे रविकोति ! द्रव्य छह हैं। उनमें पांच अस्तिकाय हैं अब तत्व सात हैं। उनका भी विवेचन अच्छी तरह सुनो। इस प्रकार भगवान् मादि प्रभुने षद्रव्य, पंचास्तिकायोंका निरूपण दिव्यध्वनिके द्वारा कर सप्त तत्त्वोंका निरूपण प्रारंभ किया। ___ आदिचक्रेश भरतेश पुत्र सचमुच में धन्य हैं, जिन्होंने समवशरणमें पहुंचकर साक्षात् तीर्थंकरका दर्शन किया, दिव्यध्वनि सुननेका भाग्य पाया । अनेक जन्म से जिन्होंने ज्ञानार्जन करनेका अभ्यास किया है। 'विशिष्ट तपश्चरण किया है वे ही ऐसे सातिशय ज्ञानधारी केवलज्ञानो तीर्थंकरोंके पादमूल में पहुँचते हैं। ऐसे पुत्रोंको पानेवाले भरतेश्वर भी धन्य हैं। वे मदा इस प्रकारकी भावना करते हैं कि हे परमात्मन् ! आप अक्षराभरण हैं, निरक्षर ज्ञानको धारण करनेवाले हैं, पापको क्षय करनेवाले हैं, परम पवित्र हैं। विमलाक्ष हैं । इसलिए हे चिवंबरपुरुष ! मेरे अंतरंग सदा बने रहो और मेरी रक्षा करो।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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