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________________ भरतेश वैभव भी जितने अंशमें देह है, उतने अंशमें सर्वत्र भरा हुआ है । देहप्रमाण आत्मा है। ___ वृक्षके अन्दरके भागमें अर्थात् काष्ठभागमें अग्नि है, परन्तु बाहरके पत्तोंमे अग्नि नहीं है। इसी प्रकार आत्मा इस शरीरमें अन्दर भरा हुआ है, परन्तु बाहरके रोमसमूह, केश और नखों में यह आत्मा नहीं है । शारीरके भागमें नाखूनसे दबानेपर जहाँतक दर्द होता है वहांतक आस्मा है। यह समझना चाहिए । जहाँ दर्द नहीं है वहाँ आत्मा नहीं है। नख, केश व रोगोंमें दर्द होतो नहीं, इसलिए वहाँपर आत्मा भी नहीं है । इस बातको हे भव्य ! अच्छी तरह ध्यानमें रक्खो। छह द्रव्योंमें द्रव्य, गुण और पर्यायके भेदसे तीन विकल्प होते हैं। उनको भी दृष्टांतके साथ अब वर्णन करेंगे। ____ कनक अर्थात् सुवर्णनामक द्रव्य है, उसका गुण पीतवर्ण है। हार, कंकण, कुण्डल आदि उसके पर्याय हैं । इसी प्रकारके तीन विकल्पोंको सभी द्रव्योंमें लगा लेना चाहिए। दूध नामक पदार्थ रसद्रव्य है । मधुर, श्वेत, आदि उसके गुण है। दही, लाल, मभवन आदि उसके पाग। निराकाररूपी पदार्थ जीव द्रव्य है उसके गुण ज्ञान दर्शन है । कर्मके वशीभूत होकर मनुष्य, देव आदि मतियों में भ्रमण करना यह पर्याय है। द्रव्यदृष्टिसे पदार्थ एक होनेपर भी पर्याय भेदसे अनेक विकल्पोंसे विभक्त होते हैं । द्रव्यपर्याय व गुणके समुदाय ही यह पदार्थ है। यह सभी द्रब्योंका स्वभाव है। जिस प्रकार कंकणको कुण्डल बना सकते हैं। कुण्डलको बिगाड़कर हार बना सकते हैं। हारको भी तोड़कर सोनेको पाली बना सकते हैं। इस प्रकार सोनेके अनेक पर्याय हुए परन्तु सुवर्ण नामका द्रव्य एक हो है। उसमें कोई अन्तर नहीं है। यह मनुष्य एक दफे मृग होता है । मृग ही देव बनता है। देव वृक्ष होता है। मनुष्य, मृग, देव, व वृक्षके भेदसे जीवके चार पर्याय हुए। परन्तु सबमें भ्रमण करनेवाला जीव एक ही है। पुरुष स्त्री बन जाता है, स्त्री पुरुष बन जाती है। और वही कभी नपुंसक पर्यायमें जाती है, इस प्रकार ये तोल पर्याय हैं । परन्तु उन तीनोंमें जीव एक ही है। अणुमात्र देहको धारण करनेवाला जीव हजार योजन प्रमाणके
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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