________________
१२२
भरतेश वैभव पूर्वोक्त ध्यानके बलसे शानावरण व दर्शनावरण कर्मका नाश किया है। ____ अंगुष्ठसे लेकर मस्तकतक वह भगवंत सुज्ञानसे सुशोभित हो रहा है। अंगुष्ठके अणुमात्र प्रदेश में जितना ज्ञान है, उससे उनको समस्त लोकका । परिज्ञान होता है । उस सर्वांगपरिपूरित ज्ञानका क्या वर्णन करना?
अनंतशान सर्वागपरिपुरित है। अनन्तदर्शन गुण भी अत्यन्त शोभा को प्राप्त हो रहा है । तोन लोकके अन्दर व बाहर वह भगवंत सदा जानते व देखते हैं।
अत्यन्त स्वच्छ रत्नदर्पणके सामने रखे हुए पदार्थ जिस प्रकार उसमें प्रतिक हो: हैार कारसे ( मस्तकतकके आत्मप्रदेशमें तीन लोक ही प्रतिबिंबित होता है ।
कांसेका स्वच्छ पाटा हो तो उसमें एक ही तरफसे पदापं दिख सकते हैं, परन्तु स्वच्छ रत्नदर्पणमें तो दोनों तरफसे पदार्थ प्रतिविदित होते हैं । इसी प्रकार भगवान्के भी ज्ञान व दर्शनसे चारों ओरके पदार्थ दिखते हैं । ___ सर्वांग परिपूर्ण ज्ञान व दर्शनसे चारों तरफके विश्वके समस्त पदार्थों को जानना व देखना सर्वज्ञका स्वभाव है । इसलिए सन्हें सर्वतोलोचन, सर्वतोमुखके नामसे सर्वजन कहते हैं, वह सत्य है ।।
पिछले अनादिकालके, आगेके अनन्तकालके, एवं आजके समस्त गत अनागत वर्तमानके विषयोंको एक ही क्षणमें जिनेंद्र भगवंत जानते हैं व देखते हैं । भाई ! वह भगवंत तीन लोकके अन्दर समस्त पदार्थोंको एक हो समयमें जानते हैं, देखते हैं। इतना ही नहीं, तीन लोकके बाहरके आकाशके भी अन्ततक जानते हैं व देखते हैं।
भगवान् अनेक द्रव्योंको उनके अनेक पर्यायोंको एक साथ जानते हैं व देखते हैं । तथापि उनको उन पदार्थोंपर मोह नहीं है । एक पदार्थको जाननेके बाद दूसरे पदार्थको जाने, अनंतर तीसरेको, इस प्रकारको क्रमवृत्ति वहाँपर नहीं है । सबको एक साथ ही जानते हैं।
संसारी जीवोंका ज्ञान व दर्शन परिमित है। इसलिए पदार्थोको जानने व देखनेको क्रिया क्रमसे होती है। परन्तु जो कर्मरहित है, ऐसे भगवतको क्रम-क्रमसे जानने की जरूरत नहीं है । एक ही समय में सर्व पदार्थोंको जान सकते हैं व देख सकते हैं।
भाई ! देखो ! एक दीपकसे यदि अनेक घरमें प्रकाश पहुँचाना हो तो क्रम-क्रमसे सबके घरमें पहुंच सकता है। परन्तु सूर्य तो उदयाचल पर्वत