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भरतेश वैभव योगिगण हैं, जो भव्योंको सदा यह उपदेश देते हैं कि चार तरवोंको कसो (ग्रहण करो) और तीन तत्त्वोंके जालमें मत फैसो। इस प्रकार उपदेश देनेवाले शिक्षक योगिगण उस समवशरणमें चार हजार एक सौ पचास (४१५०) विराजमान हैं।
उत्तम ध्यान कोई चीज नहीं है। वह प्राप्त नहीं हो सकता है, इस प्रकार तरविरुद्ध भाषण करनेवालोंके मुंह बादसे बंध करनेवाले वादि योगिराज वहाँपर बारह हजार सात सौ पचास (१२७५०) हैं। __ अणिमा, महिमा आदि विक्रियाओंमें क्षणमें एक विकियाको दिखानेमें समर्थ विक्रियाऋद्धिके धारक योगिगज बहाँपर २६००० संख्या में हैं।
यवराज ! सुनो ! पिछले व अगले जन्मके विषयको प्रत्यक्ष देखे हएक समान प्रतिपादन करनेवाले अवधिज्ञानके धारक योगिगण बहाँपर ९००० संख्यामें हैं।
भाई ! कोई मनमें कुछ विचार करें उसे कहने के पहिले ही बतलानेमें समर्थ मनःपर्ययज्ञानके धारी मुनिराज उस समवशरणमें १२७५० को संख्यामें हैं।
भगवंतकी चारों ओर बोस हजार केवलो विद्यमान हैं। भगवानके समान ही समको सुख है, शक्ति है एवं ज्ञान है ।
पवित्र संग्रमको धारण करनेवाली अजिंकायें वहाँपर साढ़े तीन लाख विराज रही हैं।
उस समवशरणमें तद्भध मोक्षगामी व भेदाभेद भक्तिके भावक सुव्रतके धारक श्रावक तीन लाखकी संख्यामें हैं।
भाई सुनो ! भगवान के दरबार में सुव्रताको आदि लेकर स्त्रियाँ पाँच लाख है । सुर, नाग, नक्षत्र, यक्ष, किंपुरुष, गंधर्व ये देव व देवांगनाओंकी संख्याको गणना नहीं हो सकती है, इसलिए वे असंख्यात्त हैं।
भाई ! लोकके मनुष्योंपर प्रभाव डालना कौन-सी बड़ी बात है ! आखिरकी कोष्ठकमें पक्षी, सिंह, मृग आदि भव्य तिर्यन प्राणी अगणित प्रमाण में हैं।
इस प्रकार भगवंतके दरबारमें गणधर, श्रुतधर, वादि शिक्षक, जिन, अणिमादि ऋद्धिधारक, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी आदि उपयुक्त विवेचनके अनुसार तेरह गण विद्यमान हैं।