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________________ १०९ मरतेश वैभव द्वारा आजित विपुल सम्पसि व अगणित राज्य मौजूद है। परन्तु उन सबसे मात्महित तो नहीं हो सकता है । यह सब अपने अधःपतन करनेवाले मवपाशके रूपमें है। विपुल सम्पत्तिके होनेपर उसका परित्याग करना यह बड़ी बात है । जवानी में दीक्षा लेना इसमें महत्व है। एवं परमात्मतत्वको जानना यह जीवनका सार है। इन सबकी प्राप्ति होनेपर हमसे बढ़कर श्रेष्ठ और कौन हो सकते हैं ? कुल, बल, सम्पत्ति सौन्दर्य इत्यादिके होते हुए, उन सबसे अपने होमको परित्याग कर तपश्चर्याके लिए इस कायको अर्पण करें तो रूपवतो स्त्रीके पतियता होनेके समान विशिष्ट फलदायक है। क्योंकि सम्पत्ति आदि के होनेपर उनसे मोहका परित्याग करना इसीमें विशेषता है। __ स्त्रियों के पाशमें जबतक यह मन नहीं फसता है तबतक उसमें एक विशिष्ट तेज रहता है। उस पाशमें फंसनेके बाद धीरे-धीरे दीपककी शोभाको देखकर फंसनेवाले कीड़ेके समान यह मनुष्य जोवनको खो देता है। हथिनीको देखकर जिस प्रकार हाथी फैसकर बड़े भारी खड्डे में पड़ता है एवं जीवनभर अपने स्वातंत्र्यको खो देता है, उसी प्रकार स्त्रियोंक मोह में पड़कर भवसागरमें फंसनेवाले अविवेकी, आँखोंके होने पर भी अन्धे हैं। मछली जिस प्रकार जरासे माँसखंडके लोभमें फंसकर अपने गलेको ही अटका लेती है और अपने प्राणोंको खोती है उसी प्रकार स्त्रियों के अल्पसुखके लोभसे जन्ममरणरूपी संसारमें फैसना क्या यह बुद्धिमत्ता है ? पहिले तो स्त्रियोंका संग ही भाररूप है। उसमें भी यदि सन्तानकी उत्पत्ति हो जाय तो वह धोरभार है। इस प्रकार वे कुमार विचार कर संसारके जंजालसे भयभीत हुए । स्त्री तो पादकी श्रृंखला रूप है और उसमें सन्तानोत्पत्ति हो जीय तो गलेकी श्रृंखला है। इस प्रकार यह स्त्रीपुत्रोंका बंधन सत्रमुच में मजबूत बंधन है। लोग बच्चोंपर प्रेम करते हैं गोदमें बेठाल लेते हैं। गोदमें हो बच्चे टट्टी करते हैं, मल छोड़ते हैं, उस समय यह छी थू कहने लगता है, यह प्रेम एक भ्रांतिरूप है। प्रेमके वशीभूत होकर बच्चोंके साथ बैठकर भोजन करते हैं। परन्तु
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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