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________________ मरतेश वैभव को हो सकता है। परन्तु शुद्धाश्म स्वरूपमें पहुंचानेवाला शुक्लध्यान योगियोंको हो हो सकता है । वह शुक्लभ्यान गृहस्थोंको नहीं हो सकता है। धर्मध्यान और शुक्लध्यानमें अन्तर क्या है ? घड़ेमें भरे हुए दूधके समान आत्मा धर्मध्यानके द्वारा दिखता है। स्फटिकके पात्रमें भरे हुए दूषके समान शुक्लध्यानके लिए गोचर होता है। अर्थात् शुक्लध्यानमें आत्मा अत्यन्त निर्मल व स्पष्ट होकर दिखता है। इतना ही धर्म व शुक्ल में अन्तर है। धर्मध्यान युवराजके समान है। शुक्लध्यान अधिराजके समान है । युवराज अधिराज जिस प्रकार बनता है उसी प्रकार धर्मध्यान जब शुक्लध्यानके रूप में परिणत होता है तब मुक्ति होती है। ___युवराज जबतक रहता है तबतक वह स्वतंत्र नहीं है। परन्तु जब यह अधिराज बनता है तब पूर्णसत्तानायक स्वतंत्र बनता है। उसी प्रकार धर्मध्यान आत्मयोगके अभ्यासकालमें होता है। उस अवस्थामें आत्मा मुक्त नहीं हो सकता है। शुक्लध्यानके प्राप्त होनेपर वह स्वतंत्र होता है, मुक्तिसाम्राज्यका अधिपति बनता है। तब कर्मबंधनका पारतंत्र्य उसे नहीं रहता है। यही आदिप्रभुका वाक्य है, इस प्रकार उन कूमारोने बहुप्त आदरके साथ आत्मधर्मका वर्णन किया। इतने में एक अत्यन्त 'विचित्र समाचार वहाँपर आया जिसे सुनकर वे सब कुमार आश्चर्यसे स्तब्ध हुए। भरतेश्वरके कुमारोंकी विद्यासामर्थ्यको देखकर पाठक आश्चर्यचकित हए होंगे। प्रत्येक शास्त्रमें उनकी गति है। अस्त्रविद्यामें, शस्त्रविद्यामें, अश्वविद्यामें, धनुर्विद्या में, जिसमें देखो उसीमें वे प्रवीण हैं। काव्यकला संगीतकला व नाटककला में भी वे प्रवीण हैं। व्याकरण, छंदःशास्त्र व आगममें वे निष्णात हैं। उसमें भी विशेषता यह है कि इस बाल्यकालमें भी अहंद्भक्ति, भेदभक्ति, अभेदभक्ति आदिके रहस्यको समझ कर आत्मधर्मका अभ्यास किया है। आत्मतत्वका निरूपण बड़े-बड़े योगियों के समान करते हैं । ऐसे सत्पुत्रोंको पानेवाले भरतेश्वर सदृश महापुरुषोंका जीवन सचमचमें धन्य है। उनका सातिशय पुण्य ही ऐसा है जिसके फलसे ऐसे सुविवेको पुत्रोंको पाते हैं । वे सदा इस प्रकारको भावना करते हैं कि "हे परमात्मन् ! आप विद्यारूप हैं, पराक्रमों हैं, सद्योजात हैं, शांतस्वरूप है। जो पुरुष हैं अर्थात् लोकातिशायी स्वरूपको धारण करनेवाले हैं, भवरोग पंच है, इसलिए वापको जय हो।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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