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भरतेश वैभव
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सो पर्याप्त है। वह अपने समस्त वंशज परिवारका संरक्षण करता है । यह इस कुलका संप्रदाय है । इसलिए वे निश्चित होकर चले गए। इसमें दुःखकी क्या बात है !
भाई ! वे क्या संरक्षण करते हैं। उनका नाम लेनेसे समस्त विश्व ही अपना वश हो जाता है, इतना चमत्कार उनके मंगलनाममें है । युव राज तुम इसे नहीं जानते ? दुःख मत करो ।
भेदरहित होकर जब कीर्तिकुमार बोल रहा था । चक्रवर्ती बहुत आनंदित होकर सुन रहे थे। इतने में रत्नबलराजकुमार ( महाबलका छोटा भाई ) सम्राट के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हुआ ? और कहने लगा । पिताजी ! भाईने जो कहा वह ठीक ही कहा ! वह सामान्य बात नहीं है। उसका अर्थ मैं कहता हूँ, सुननेको कृपा करें।
हमारे माता-पिताभने मोहको जीत लिया ! परन्तु हम तो मोहमें ही रहे। ऐसी हालतमें हमारा और उनका मिलकर रहना कैसे बन सकता था। इसलिए उनका हमारे साथ कोई संबंध नहीं है, यह कहा गया है बिलकुल सस्य है ।
वे हमारे माता पिता योगी बन गये । अब उन्हें हम माँ बाप कैसे कह सकते हैं ? इसलिए भोग में स्थित आप ही को माँ बाप कहा है, यह भी बिलकुल सत्य है ।
भरतेश्वर रत्नबलराज की बात को सुनकर बहुत हो प्रसन्न हुए। एवं उन्हीं दोनों हाथोंसे दोनों पुत्रोंको प्रेमसे बुलाकर आलिंगन दिया। वहाँ उपस्थित भ्राप्त मित्र भी प्रसन्न हुए ।
सुबलराजको भो बुलाकर सम्राट्ने कहा कि बेटा ! तुम्हारे भाइयोंने जो कहा वह ठीक है न ? तब उसने उत्तरमें कहा कि पिताजी ! आपके पुत्रोंकी बात हमेशा ठीक ही रहती है। योग्य माता-पिताओंके गर्भसे आनेवाले सुपुत्रोंकी बात भी योग्य ही रहती है । इतना में जानता है । इससे आगे आप ही जानें ।
भरतेश्वरने प्रसन्न होकर उसे भी आलिंगन दिया, और कहने लगे कि बेटा ! आदिराज व युवराजको देखा? उनमें कोई भेद हो नहीं है । सहोदरों में भेदभाव तो सत्कुलप्रसूतों में नहीं होता है । नीच लोगों में होता है, इत्यादि कहकर उन्हें प्रसन्न किया ।
मरतेश्वर मनमें सोचने लगे कि इन पुत्रोंके विवेकको देखकर मेरा मन प्रसन्न हुआ । माताओंके बियोगका संताप भी दूर हो गया। इनको संतुष्ट