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________________ भरतेश वैभव किसीको पसन्द कर यह सुलोचना माला डालेगी वही उसका पति होगा। इस प्रकारको सूचना सर्वत्र जानेसे अनेक देशके राजकुमार यहोपर आकर एकत्रित हुए हैं। ___नारीके नामको सुनते ही कामुकजन हक्का-बक्का होकर फल सहित वृक्षपर जिस प्रकार पक्षी दौड़ते हैं उसी प्रकार आते हैं। इसलिए यहाँपर भी हजारों राजकुमार आये हुए है : ___ कमलके सरोवरमें जिस प्रकार भ्रमर हजारोंको संख्यामें आते हैं उसी प्रकार कमलमुखी सुलोचनाके स्वयंवरके लिए अनेक राजकुमार आये Lin.-.--.---.-. उन सबको आदर सत्कार, स्नान, भोजन, नाट्यक्रीड़ा आदिसे अकंपन राजा संतुष्ट कर रहे हैं। स्वयंवर मंडपकी सजावट हो गई है। नगरका श्रृंगार किया गया है। अब वह सुलोचना देवी कल या परसोंतक किसोके गलेमें माला डालेगी, इस प्रकार लोग यत्र-तत्र बातचीत कर रहे हैं। इस समाचारको सुनकर अर्ककोति व आदिराज एकांतमें कुछ विचार करने लगे, क्योंकि वे भरतेशके ही तो सुपुत्र हैं। अर्कोति आदिराज. कुमारसे पुछने लगा कि आदिराज! क्या अपनेको काशोंके अन्दर जाना चाहिए या नहीं ? उत्तरमें आदिराज कहने लगा कि जाने में क्या हानि है ? हमारे अधीनस्थ राजाओंके राज्यको जानेमें संकोच क्यों? और उसमें हर्ज क्या है ? उसको पुत्रीके लोभसे जैसे दूसरे लोग आये हैं उस प्रकार हम लोग नहीं आये हैं। अपन तो पिताजीसे कहकर देशकी शोभा देखनेके लिए निकले हैं। यह सब लोकमें प्रसिद्ध है। यह काशी अपने लिए रास्तेमें है, उसे छोड़कर जावें तो भो उसमें गंभीरता नहीं रहती, पाहे अपन यहाँपर अधिक न ठहरकर आगे बढ़ सकते हैं । इसे सुनकर अर्ककीर्ति कहने लगा कि हमें देखनेके बाद वे हमें जल्दी नहीं जाने देंगे । फिर अपनको स्वयंवर मंडपमें जरूर ले जायेंगे । आदिराज पुनः कहने लगा कि भाई ! स्वयंवरशालामें होन विचारवाले हो जाते हैं। ज्ञानी वहाँपर जाते नहीं हैं। कदाचित् जावें तो वह कुमारी किसी एक हो के गलेमें माला डालेगी। बाकी के सबको वहाँसे खाली हाथ ही वापिस जाना पड़ता है। स्वयंवरके पहिले प्रत्येक व्यक्ति उक्त नारीको वरनेके लिए आशा करते हैं। परन्तु जब यह माला किसी एकके गले में पड़ती है तब सब लोग अपनो लज्जाको बेच कर जाते हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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