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भरतेश वैभव
स्वयंवर संधि
११.
भगवान बाहुबलिस्वामी, अनंतवीर्य एवं कुछ महाकच्छ योगियोंको केवलज्ञान हुआ इससे भरतजी बहुत प्रसन्न हुए हैं । उसे स्मरण करते हुए आनन्दसे अपने समयको व्यतीत कर रहे हैं ।
महाबल राजकुमार व रत्नबल राजकुमारका योग्य वयमें बहुत वैभव के साथ विवाह कर पितृवियोग के दुःखको भुलाया ।
अपने दामाद राजकुमारोंको एवं अपनी पुत्रियों को कभी-कभी बुलवा कर उनको अनेक विपुल सम्पत्ति देकर भेजते थे । इस प्रकार बहुत आनन्दसे भरतजी का समय जा रहा है ।
इधर सम्राट् अयोध्या में सुखसे हैं तो उधर युवराज अर्केकीर्तिकुमार अपने भाई आदिराज के साथ राज्यकी शोभा देखनेके लिए पिताजीकी अनुमतिसे गये हैं। आर्यखण्डके अनेक राज्यों में भ्रमण करते हुए एवं बहाँके राजाओं से सम्मानको प्राप्त करते हुए आनन्दसे जा रहे हैं।
कुछ देशोंके संदर्शन के बाद कर्णाटक देशके राजाने उन्हें बहुत आदरके साथ अपने यहां बुलवाया व बहुत सम्मान किया। वह अर्ककीर्तिका खास मामा है । कुन्तलावती देवीके बड़े भाई भानुराज हैं। उन्होंने अपने नगर में अर्ककोति व आदिराजका विशेष रूप से स्वागत कराया। उस नगरको उस समय किष्किंधपुर कहते थे । परन्तु कलियुग में आनेयगोंदि कहते हैं । वहाँपर भानुराजने अपनी दो पुत्रियोंका विवाह उन दोनों राजकुमारोंके साथ किया। भानुमतीका अर्ककोर्तिके साथ, वसंतकुमारीका आदिराजके साथ विवाह हुआ। उसके बाद वे दोनों कुमार पश्चिम देशको ओर गये ।
इस समाचारको सुनकर कुसुमाजी राणोके भाई वीर विमलराजने सौराष्ट्र देशके गिरिनगरको लाकर उनका यथेष्ट सत्कार किया । विमलाजी नामक अपनी पुत्रीको अर्ककीर्तिको समर्पण कर अपने छोटे भाई कमलराजकी पुत्री कमलाजीको आदिराजको समर्पण किया ।
इस प्रकार अनेक देशों के राजाओंसे सम्मानको प्राप्त करते हुए काशी देशकी ओर आये । काशी नगरमें प्रवेश करते ही वहाँपर एक नवीन वार्ता सुनने में आई ।
वाराणसी राज्यके अधिपति अकंपन राजा हैं। उनकी पुत्री सुलोचना देवीके स्वयंवरका निश्चय हुआ है। उपस्थित अनेक राजपुत्रों में जिस