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________________ भरतेश वैभव अंगोपांग, समचतुररुस्संस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वे क्रियिकशरीर, वैकियिक अंगोपांग, वर्णादि ४, अगुरुलघु, उपघात, परवात, उच्छ्वास, स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आय ७वें भाग में हास्य, रति, भय, जुगुप्सा । ९ - पुरुषवेद, संज्वलनको वमानमाया लोभ । इस प्रकार उपर्युल्लिखित कर्मो को दूर कर नवमें गुणस्थानके अन्त में बादरलोभके साथ मायाको भी दूर किया तब उस योगीने सूक्ष्मसांपराय नामक दसवें गुणस्थान में पदार्पण किया। वपर सूक्ष्म लोभका भी नाश किया, उसी समय मोहनीय कर्मकी अवशेष प्रकृतियोंको नष्ट कर आगे बढ़े । उपशान्तकषाय नामक ११र्वे गुणस्थानपर आरोहण न कर एकदम बारहवें गुणस्थानमे ही आरूढ़ हुए। क्योंकि ये क्षपकश्रेणीपर चढ़ रहे हैं। उस क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थानपर आरूढ़ होते ही द्वितीय शुक्लध्यानकी प्राप्ति हुई। वहाँपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय कैर्म पूर्णतः नष्ट हुए अर्थात् घातिया कर्म दूर हुए वह योगी जिन बन गये । क्षुधा, तृषा, आदि अठारह दोष दूर हुए। उस समय सयोगकेवली नामक तेरहवें गुणस्थानपर वे योगी आरूढ़ हुए। हवा के समान चलित होनेवाला चित्त अब दृढ़ हो गया है। अब उसका सम्बन्ध शरीरके साथ न होकर आत्माके साथ हुआ है । चारित्रमोहनीय कर्मका सर्वथा नाश होने से यथाख्यातचारित्र हो गया है। मोह नाम अन्धकारका है। उसके दूर होनेपर वहाँपर एकदम प्रकाश ही प्रकाश है आत्मामें आत्माकी स्थिरता हुई है । आत्मा में आत्माका स्थिर होना इसीको कोई सुखके नामसे वर्णन करते हैं । ज्ञानावरण व दर्शनावरणके सर्वथा अभाव होने के कारण अनंतज्ञान च अनंतदर्शनका उदय हुआ एवं आत्मीय शक्तिके प्रगट होने में विघ्न कारक अन्तरायके दूर होनेसे अनंतवीर्य व अनंतसुखको प्राप्ति हुई। इस प्रकार ६३ प्रकृतियों का नाश होनेपर उस बात्मामें विशिष्ट तेज प्रज्वलित हुआ । मेघमंडल से बाहर निकले हुए सूर्यमंडल के समान उस आत्मा में केवलज्ञानज्योति हुई। तीन लोकके अन्दर व बाहर स्थित सर्व पदार्थों को वे अब एक समय में जानते हैं। तीन लोकको एक साथ उठा सकते हैं, इतना सामथ्र्य अब प्राप्त हुआ है। विशिष्ट आत्मोत्थ सुखकी प्राप्ति हुई है । विशेष क्या ? इन्ही में नवविध लब्धियोंका अंतर्भाव हुआ । 1
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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