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________________ भरतेश वैभव ४२७. तुम्हें आगे ले गया, आश्चर्य है ! प्राणकांत ! आपको जो गवं उद्भव हुआ यह हुंडावसर्पिणीका ही फल है । कामदेव होकर भी जब तुमने स्त्रियोंको मारा तो तुम्हें पुष्पबाण कहना चाहिये या मपंवाण कहना चाहिये ? देव ! तुम अनेकार बाहले किमलेको शरीर दी है. आत्मा एक ही है । इस प्रकार कहकर हमारे चित्तको अपहरण किया तो क्या हम लोग अब यहां रह सकती हैं ? तुम्हारे पीछे ही आनी हैं । हे प्रिय नोते ! हम लोग अब पतिदेवके माममें जाती है। हमारा स्मरण तुम अब मत करो। बाणपक्षी ! मयूर ! हे झूला व शव्यागृह । सुन ! तुम्हारे भोगकी हमें अब जरूरत नहीं है। हम योगके लिये जाने हैं। हे लता ! नन्दनवन ! शीतलसरोवर ! कमल ! मारुत ! मसालि ! आप लोग भी सुनो, हम लोग पति जिस दिशाकी ओर गये हैं उसी दिशाकी ओर जाती हैं। आप लोग सुखसे रहो। इस प्रकारसे अनेक प्रकारसे विलाप करती हुई मासके पास आई व सासूके चरणोंमें नमस्कार कर कहा कि माताजी! आपत्रा पत्र आगे गया है । हम लोग जाकर उनको समझाकर वापिस लानी हैं। जाते ममय उन्होंने हमसे कहा था कि "मैं युद्ध के लिए नहीं जा रहा हूँ। बड़े भैयाको नमस्कार कर वापिस आऊँगा" इस प्रकार हमें फँगाकर चने गये हैं, ऐसे धोखेवाजको दीक्षा दी जा सकती है क्या? हम लोग जाकर मामाजी ( आदिप्रभु ) से ही इस वानको पूछेगी, हमें आज्ञा दो। माताजी ! खाया, पीया, मौज किया, असंख्य वैभवका अनुभव किया। अब यहाँ रहनेसे क्या प्रयोजन ? पतिदेव जिम दीक्षा लिए गये हैं उस दीक्षाकी ओर हम भी जायेंगी, आज्ञा दो। नेत्र व चित्त के लिए आनद उत्पन्न करनेवाले अत्यंत सुन्दर मरीरके प्रति भी तुम्हारे बेटेने उपेक्षा की तो हम लोग इस शरीरको तपश्चर्याम लगाकर दंडित न करें तो क्या हम जातिक्षत्रियपुत्री हैं ? माता ! देरी क्यों ? हमें भेजो, पतिके जाने के बाद सतियाँ घरपर रहें यह उचित नहीं है । हम लोग कैलास में जान र बाह्मीसुन्दरीके पास में रहेंगी, अनुमति दो। मुनंदादेवीने कहा कि मैं भी दीक्षाके लिए आती हूँ । मेरे लिए अब यहाँ क्या है ? तथापि भरतेश व बड़ी बहिनको कहकर जाना चाहिए । इसलिए मुझे थोड़ी देरी है, आप लोग आगे बढ़ें। इस प्रकार उनके साथ उनके भाई व विश्वासपात्रोंको साथमें भेजा। जिस समय सुनंदादेवीने बहुओंको रवाना किया उस समय सुबलराज नामक ३ वर्षके बाहुबलिका पुत्र आकर रोकर आग्रह करने लगा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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