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भरतेश वैभव लगी कि कसा निष्ठुर हृदय है वह ! मैं बड़े भाईको देखकर आता हूँ ऐसा कहकर चला गया ! क्या वहां जानेपर वैराग्यकी उत्पत्ति हुई ! नहीं हो सकता, झंझानिल ! बोलो ! क्या हुआ ! ____ झंझानिल-माता ! आपका कहना ठीक है । यहाँपर यही कहकर गये थे कि मैं बड़े भैयाको देखनेके लिए जाऊँगा। परन्तु वहाँ जानेपर युद्ध करनेका ही हठ किया । बादमें मित्रोंने मल्ल, जल व नेत्र युद्धका निर्णय किया । इन युद्धोंमें भी भाईका हृदय दुखेगा इस विचारसे भरतेश्वरने प्रत्यक्ष युद्ध नहीं किया। स्पष्ट सब सेना सूने इस रूपसे कहा कि भाई तुम्हारी जीत हो गई, मैं हार गया। इतना ही क्यों ! भरतेश्वरने स्पष्ट कहा कि 'बाहुबलि षट्रखंड राज्यका पालन तुम करो मुझे एक छोटासा राज्य दे दो, में आनन्दसे रहूंगा।'' इससे भी अधिक उन्होंने चक्र रत्नको बाहुबलिकी सेवामें जानेके लिए कहा, जब वह नहीं गया तब धक्का देकर बाहुबलिके पास भेजा। इन बातोंसे स्वतः लज्जित होकर बाहुबलि दीक्षाके लिये चले गये। ___ इन बातोंको सुनकर पुनः सुनन्दादेबीको दुःख ही रहा है। पुनः पुनः मूच्छित होती है व जागृत होकर विलाप करती है । बेटा ! तुमने मुझे मारा, तुम्हें अपनी स्त्रियोंका ध्यान नहीं रहा, अपने छोटे पुत्रोंका भी विचार नहीं रहा । इस उमरमें दीक्षा लेना क्या उचित है ? बेटा ! बड़े भयाके विरोधमें नई होकर रणभूमिमें वैराग्य उत्पन्न हो, एवं जवानी में दीक्षा लो, हम प्रकार भल कर भी मैंने कभी आशीर्वाद नहीं दिया था। फिर ऐसा क्यों हुआ? लोकको मोहित करनेवाला तुम्हारा रूप कहाँ ? तुम्हारा वैभव कहाँ और यह मुनिवेष वाहाँ ? यह सब स्वप्न के समान मालम होता है। इस प्रकार वाहन लिकी माता अनेक तरहसे दुःख कर रही हैं।
इधर कामदेवके अंतःपुरमें जब यह समाचार मालम हुआ, रानियाँ परवश होकर रोने लगीं। उनको मर्यादातीत दुःख हो रहा है, मोक्ष जानेका समाचार होता तो वे सब निराश हो जाती । परन्तु दीक्षा लेने का समाचार होनेसे फिरसे पतिको देखनेकी इच्छा है । अन्तःपुर दुःखमय हो रहा है। विशेष क्या बिजली चमककर मेधकी गर्जना होकर अच्छी तरह बरसात जिस प्रकार पड़ती है उस प्रकार अश्रुजलकी वर्षा उस समय हो रही है । देव ! क्या हमें छोड़कर चले गये ? जीते-जी। जानसे मारा हमें ! तुम्हारे लिए अंगनाओंके संयोगसे उपेक्षा हो गई ? क्या मुक्त्यंगनाके संगकी ओर चित्त बड़ा है ? युद्धस्थानके बहानेसे देव