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________________ भरतेश वैभव ४२३ भरतेश्वर भाई ! इस बातको मत बोलो, मेरे मनको प्रसन्न करना तुम्हारा कर्तव्य है । मुझे प्रसन्न करनेके बाद तुम जा सकते हो । इसी प्रकार भरतेश्वरने बाहुबलिसे बहुत प्रेमसे कहा । बाहुबलि भैया! मैं दीक्षा लेकर मोक्षमंदिरमें तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा । आज पिताजी के पास जाता हूँ । स्वीकार करो । अब संसारसुखोकी लालसा मेरे चित्तमें नहीं रही। आप लोगोंके साथ जो ममत्व परिणति थी वह भी चित्तसे हट गई। जो मन मुड़ गया उसे अब तेज कैसे कर सकता हूँ ? इसलिये तुम मुझे प्रेमसे जानेके लिये कह दो | यही मैं तुमसे चाहता हूँ। जिस देहने बड़े भाईके विरोध में खड़े होनेके लिये सहायता दी उस देहूको तपश्चर्याके द्वारा मिट्टी में मिलाऊँगा । जिस कर्मने मुझे धोका दिया और जिसने मुझे जलाया उस कर्मको अनुभव न करके जलाऊँगा और मोक्षसाम्राज्यका अधिपति बनूंगा । तुम देखो तो सही ! भैया ! दिनपर दिन शक्ति बढ़ती नहीं । विरक्ति क्या हम चाहें तब आ सकती है ? इसलिये आज मुक्तिके लिये उपयुक्त साधनकी प्राप्ति हुई है । अतः आत्मसाधन कर लेना महामुक्ति है । इसलिये मुझे रोको मत, भेज दो। कुछ भरतेश्वर भाई ! ऐसा नहीं हो सकता। तुम और मैं दिन राज्यसुखको भोगकर फिर दीक्षा लेकर जायेंगे। मैं तुम्हारे भरोसेपर ही हूँ परन्तु तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो, वह ठीक नहीं है। भाई ! विचार करो । मेरे छह भाई तो पिताजी के साथ ही चले गये । ९३ भाई कल ही दीक्षा लेकर चले गये । यदि तुम भी चले जाओगे तो मैं भाग्यहीन हो जाऊँगा । इसलिये मेरी बातको स्वीकार करो। जानेका विचार छोड़ दो । -- बाहुबलि भैया आपको कौन रहकर क्या कर सकते हैं ? अपने कुमार तो हैं, वे सब योग्य हैं। सब बातोंकी समृद्धि है, इसलिये मुझे भेजना ही चाहिये। भैया ! अब विशेष आग्रह मत करो, भगवान् आदिनाथ स्वामीकी शपथ है, आपके चरणोंकी शपथ है । मेरे गुरु श्री हंसनाथ (परमात्मा ) ही इसके लिये साक्षी हैं। मैं अब नहीं रह सकता, मैं अवश्य दीक्षाके लिये जाऊँगा । संतोषके साथ भेजो, अब मुझे मत रोको । इस प्रकार कहते हुए भरतेशके चरणोंमें बाहुबलिने अपना मस्तक रखा । भरतेश्वरके आँखोंसे धाराप्रवाह रूपसे अश्रुधारा बह गई ! कहने लगे कि भाई ! तुम जो चाहते हो सो करो ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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