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________________ ४२२ भरतेश वैभव बाहुबलि ---मुझे किसी भी बातकी चिंता नहीं है । परन्तु मेरी एक ही इच्छा है, उसे स्वीकार करना चाहिए । भरतेश्वर · भाई ! बोलो, तुम क्या चाहते हो ? मैं तुम्हारी सर्व इच्छाओं की पूर्ति करूंगा। बाहुबाल-भैया ! मुझे दीक्षा लेने के लिए अनुमति मिलनी चाहिए। मैं तपोवनको जाऊंगा। सम्राट् भरतेश इसे सुनकर अपने आसनसे एकदम उ । बाहुबलि को आलिंगन देकर कहने लगे कि भाई ! इस एक बातको भूलकर दूसरी कोई बात हो तो बोलो। आज दीक्षाके लिए जानेका क्या कारण है ? युद्ध में भंग हुआ या क्या तमपर आक्षेप करते हुए मैं बोला हूँ। मोक्षकार्यको अपन बादमें विचार करेंगे। आज इस क्षोभकी जरूरत नहीं है। बाहुबलि भंगको कुछ भी नहीं हुआ । परन्तु युद्धरंगमें आपके प्रनि बिरोध दिखाने तककी क्षुद्रताको मैंने दिखाया । क्षणभंगुर कर्मके वशीभूत होकर मुझे ऐसा करना पड़ा जिससे मुझे दुःख हुआ। इसलिए मेरे अंतरंगमें पूर्ण ग्लानि हुई है अतः मैं जाऊँगा। ___भरतेश्वर मेरा सहोदर यदि मेरे सामने युद्धक्षेत्रमें खड़ा हो जाय तो क्या बिगड़ा ? यह तो मेरे लिये एक विनोदकी बात है ! परन्तु विचार करनेकी जरूरत क्या है? यूद्धके इशारेकी भेरी नहीं बजी थी। बाहुबलि-भैया ! शुष्कचर्मकी भेरीका शब्द नहीं हुआ तो क्या हुआ ? परन्तु निष्करण वृत्तिसे मैंने जो दुष्कराचरण किया उसे तो लोककी मुखभेरी किष्किदके समान बोल रही है। यह क्या कम है ? भैया ! तुम्हारे मुखसे जो बोलनेके लिए योग्य नहीं है ऐसे लधुवाक्योंको मैंने बुलवाये। मेरी निष्ठुरतासे चकरन भी कांतिहीन होकर एक तरफ जाकर खड़ा रह गया। इससे अधिक भंगकी क्या जरूरत है ? हद हो गई, बस ! बस ! ____ भरतेश्वर --भाई ! इसमें तुम्हारा क्या अपराध है ? हुंडावसपिढीके दोषसे मेरे लिये इस बातको पिताजीने पहिलेसे मुझे कहा है। इसलिए तुम अन्यथा विचार मत करो। ___ बाहुबलि भैया कालदोषसे घटनेवाली दुर्घटना मेरे द्वारा प्रकट हो गई, इस बातको लोक अब नहीं भूल सकता है। अब इस कलंक को कैलासमें जाकर ही धो सकता हूँ, अब देरी न कर मेरी प्रार्थनाको स्वीकार करो।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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