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________________ भरतेश वैभव हृदयको भी मृदुवचनोंके द्वारा पानी बना सकते हैं । अभिमान पर्वतपर चढ़े हुए मनुष्यको भी शान्त व विनयपूर्ण हृदयसे नीचे उतार सकते हैं। अभिमानीको देखकर मानीका मान चढ़ता है। निरभिमानी मंदकषायी को देखकर वह कैसे बढ़ सकता है ? आत्मभावक पुरुषोंका हृदय, काय, व्यवहार, वचन, वृत्ति व प्रवृत्ति आदि सर्व बातें निराली ही रहती हैं। उनका प्रभाव किस समय किस आत्मापर क्या किस प्रकार होता है। यह पहिलेसे कहने में नहीं आ सकता है। वह अचित्य है । भरतेश्वर को इन बातोंका विशिष्ट अभ्यास है। अतएब अजेय शक्तिको भी जीतनेका धैर्य उनमें है। वे सदा इस प्रकारवी भावना करते हैं कि हे परमात्मन् ! तुम अपनी बोली, अपनी दृष्टि ब खेलसे पापरूपी पर्वतको चकनाचूर करके लोकाधिपत्यको प्राप्त करते हो, अतएव हे चिदम्बरपुरुष ! अन्तरंगमें अविरत होकर निवास करो, यही मेरी प्रार्थना है । हे सिद्धात्मन् ! यह शरीर भिन्न है, आत्मा भिन्न है, इस प्रकारके तत्वार्थको बार-बार कहकर संपूर्ण प्राणियोंके हुदयके अविवेक को आप दूर करते हैं। हे जगन्नाथ ! मुझे सदा विवेकपूर्ण वचनोंको बोलनेका सामर्थ्य प्रदान करो। इसी भावनाका फल है कि भरतेश्वर सदा सर्वविजयी होते हैं । इति राजेंद्रगुणवाक्यसंधि. अथ चित्तजनिगसंधि भरतेश्वरने विचार किया था कि यदि युद्ध में भाईका भंग करूं तो वह दीक्षा लेकर चला जायगा । अतः प्रत्यक्ष युद्ध न करके, इस प्रकार के वचनोंसे उसके हृदयको शान्त किया जाय । परन्तु कुछ लोग साक्षात् युद्ध किया, इस प्रकार वर्णन करते हैं। जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध व मल्लयुद्ध में अपने छोटे भाईकी जीत बताकर भरतेश्वरने अपनी हार बताई, परन्तु अन्यत्र वर्णन मिलता है कि साक्षात् युद्ध करके ही बाहुबलिने भरतेशको हराया। परन्तु विचार करनेकी बात है कि क्या कामदेव चक्रवर्तीको जीत सकता है ? . कामदेव जगतको मोहित करनेका सामर्थ्य है । फिर क्या, षट्खडाधिपतिको जीतनेका सामर्थ्य है ? चाँदनीमें उज्ज्वल प्रकाश हो सकता है, तो क्या वह सूर्यकिरणोंको भी फीका कर सकती है ? कभी --nuria
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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