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भरतेश वैभव हो, इसलिए ही सज्जनजनाके द्वारा पूज्य हो ! हे अमृतवारिधि ! मेरे हृदयमें सदा बने रहो।
निरंजन गिद्ध ! नाममोहनसिद्ध ! रूपमोहनसिद्ध ! स्वामित्वमोहनसिद्ध ! कोमलवाक्यमोहनसिद्ध ! जयकलानाम ! हे सिद्धात्मन् ! मेरे हृदय में सदा बने रहो ! ___ इसी भावनाका फल है कि उनको कमी भी अजेय शक्तिको जीतनेका धैर्य रहता है। इसलिए वे हमेशा गम्भीर रहते हैं ।
इति मदनसमाहन्धि
अथ राजेंद्रगुणवावयसन्धि भरतेश और बाहुबलि युद्धके सन्मुख हैं, परन्तु उन दोनोंके मन्त्री मित्र व प्रमुख राजाओंने आपसमें मिलकर प्रसंगको टालनेके सम्बन्धमें परामर्श किया । वे विचार करने लगे कि बाहुबलिको बहुतसे लोगोंने समझाया, तथापि उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। इसलिए अब युद्ध तो होगा ही, अब कौन क्या कर सकते हैं ? जव चक्रवर्ती और कामदेव युद्ध के लिये खड़े हैं तो यह सामान्य युद्ध नहीं होगा। एक दूसरेके प्रति झुक नहीं सकते । यह कामदेव दूसरोंको भले ही जीत सकता है, परन्तु आत्मनिरीक्षण करनेवाले भरतशको कभी जीत नहीं सकता है। हम इस बातको अच्छी तरह जानते हैं। अच्छा ? कुसुमास्त्रसे युद्ध होगा या खड्गसे होगा? बाहुबलिने क्या विचार किया है ? बाहुबलिके मंत्री-मित्रोंने कहा कि कुसुमास्त्रको परमात्मयोगसे हरायेंगे, इस विचारसे लोहास्थसे ही युद्ध करनेका निश्चय किया है। तब दोनों वनकाय हैं, उनको तो कुछ भी कष्ट नहीं होगा । परन्तु दोनों पर्वतोंके घर्षणसे जिस प्रकार बीचके पदार्थ चणित होते हैं, उसी प्रकार सर्व सेनाको हालत होगी । इसलिए समस्त सनाको मारनेकी आवश्यकता नहीं । हाथमें खड्ग लेकर युद्ध करनेकी जरूरत नहीं, व्यर्थ ही निरपराध सेनाकी हत्या होगी। इसलिए दोनोंको धर्मयुद्ध करने के लिए प्रार्थना करें 1 सव लोगोंको यह बात पसंद आई । सम्राट्के पास सब पहुंचे व प्रार्थना की कि स्वामिन् ! युवराजने लोहास्त्रसे युद्ध करनेकी ठानी है, पुष्पबाणसे वह काम नहीं लेगा। अब तो निश्चय समझिये कि यह सेना पुरप्रवेश नहीं कर सकेगी, अपितु यमपुरमें प्रवेश करेगी।