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________________ Y०७ भरतेश वैभव हो, इसलिए ही सज्जनजनाके द्वारा पूज्य हो ! हे अमृतवारिधि ! मेरे हृदयमें सदा बने रहो। निरंजन गिद्ध ! नाममोहनसिद्ध ! रूपमोहनसिद्ध ! स्वामित्वमोहनसिद्ध ! कोमलवाक्यमोहनसिद्ध ! जयकलानाम ! हे सिद्धात्मन् ! मेरे हृदय में सदा बने रहो ! ___ इसी भावनाका फल है कि उनको कमी भी अजेय शक्तिको जीतनेका धैर्य रहता है। इसलिए वे हमेशा गम्भीर रहते हैं । इति मदनसमाहन्धि अथ राजेंद्रगुणवावयसन्धि भरतेश और बाहुबलि युद्धके सन्मुख हैं, परन्तु उन दोनोंके मन्त्री मित्र व प्रमुख राजाओंने आपसमें मिलकर प्रसंगको टालनेके सम्बन्धमें परामर्श किया । वे विचार करने लगे कि बाहुबलिको बहुतसे लोगोंने समझाया, तथापि उसका कोई उपयोग नहीं हुआ। इसलिए अब युद्ध तो होगा ही, अब कौन क्या कर सकते हैं ? जव चक्रवर्ती और कामदेव युद्ध के लिये खड़े हैं तो यह सामान्य युद्ध नहीं होगा। एक दूसरेके प्रति झुक नहीं सकते । यह कामदेव दूसरोंको भले ही जीत सकता है, परन्तु आत्मनिरीक्षण करनेवाले भरतशको कभी जीत नहीं सकता है। हम इस बातको अच्छी तरह जानते हैं। अच्छा ? कुसुमास्त्रसे युद्ध होगा या खड्गसे होगा? बाहुबलिने क्या विचार किया है ? बाहुबलिके मंत्री-मित्रोंने कहा कि कुसुमास्त्रको परमात्मयोगसे हरायेंगे, इस विचारसे लोहास्थसे ही युद्ध करनेका निश्चय किया है। तब दोनों वनकाय हैं, उनको तो कुछ भी कष्ट नहीं होगा । परन्तु दोनों पर्वतोंके घर्षणसे जिस प्रकार बीचके पदार्थ चणित होते हैं, उसी प्रकार सर्व सेनाको हालत होगी । इसलिए समस्त सनाको मारनेकी आवश्यकता नहीं । हाथमें खड्ग लेकर युद्ध करनेकी जरूरत नहीं, व्यर्थ ही निरपराध सेनाकी हत्या होगी। इसलिए दोनोंको धर्मयुद्ध करने के लिए प्रार्थना करें 1 सव लोगोंको यह बात पसंद आई । सम्राट्के पास सब पहुंचे व प्रार्थना की कि स्वामिन् ! युवराजने लोहास्त्रसे युद्ध करनेकी ठानी है, पुष्पबाणसे वह काम नहीं लेगा। अब तो निश्चय समझिये कि यह सेना पुरप्रवेश नहीं कर सकेगी, अपितु यमपुरमें प्रवेश करेगी।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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