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भरतेश वैभव
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सफल होती हैं ? इस प्रकार कहते हुए बह रोने लगा। स्वामिन् ! मैं कितना दुष्ट हुँ, तीन लोककी अमृत जहाँसे मिलता है उस मनमें मैंने अग्निज्वालाको पैदा कर दी, दूध जहाँसे निकलता है वहाँ रक्तको उत्पन्न किया । मुझसे अधिक अधम ब पापी लोकमें कौन होंगे ? बाहुबलि उसको सांत्वना करते हुए कहने लगे कि दक्षिण उठो ! तुम पापी नहीं हो जाओ। तब दक्षिणांकने उठकर हाथ जोड़ा ब जाता हूँ कहकर जाने लगा। तब पाम खड़ा हआ मंत्रीने यह कहकर रोका कि दक्षिण ! जाओ मत, ठहरो। मंत्रीने बहत विनयने साथ बाहबलिसे निवेदन किया कि स्वामिन् ! आपके सामने मैं बोलने के लिए डरता हूँ | आपके क्रोधके सामने कौन बोल सकता है ? हे कामदेव ! आप जो आज्ञा देंगे उससे हम बाहर नहीं हैं, इसलिये मेरी विनतीको सुनियेगा। कार दोनों भगवान् अहिलने पुत्र हैं, अदि आप लोग ही विरस बर्ताव करें तो लोकमें अन्य लोग सरल व्यवहार किस प्रकार करेंगे ! अपने बड़े भाईके पास आप न जाकर अपनी आँख लाल करें तो लोकमें अन्य भाई-भाई तो डंडा लेकर खड़े हो जायेंगे। जो लोग संसारमें मार्ग छोड़कर चलते हैं उनको मार्ग बतलानेका कार्य आप लोग करते हैं। यदि आप लोग ही मार्ग छोड़कर व्यवहार करें तो आपको मार्ग बतलानेवाले कौन ? स्वामिन् ! विचार कीजिये, गुरुको शिष्य, पिताको पुत्र अपने पतिको स्त्री और बड़े भाईको छोटे भाईने यदि नमस्कार किया तो लोकमें बर्सात सस्यादिकी वृद्धि किस प्रकार हो सकेगी। इसके अलावा स्वामिन् ! आप सोचो कि आप और आपके बड़े भाई लोकके अन्य सामान्य राजाओंके समान नहीं है। देवलोकको भी अपने गुणोंसे आप लोग मुग्ध करते हो। इसलिये आप लोगोंके इस प्रकारका विचार मुक्त नहीं है। मेरे मन में जो आई उसे निर्वाज्य वृत्तिसे मैंने कहा है । अब आप ही विचार करें। यहाँ जो मित्र हैं वे क्या नहीं जानते हैं ? तब वहाँ बैठे बाहुबलिके मित्रोंने एक साथ कहा राजन् ! प्रणयचन्द्र मंत्रीने बहुत उचित कहा । हमारे स्वामीको भी प्रसन्नता होगी। विवेकी स्वामिन् ! लोकमें आप नहीं जानते हैं ऐसी एक भी कला नहीं है। ऐसी अवस्थामें बड़े भाईको नमस्कार करनेके लिए इनकार करना क्या उचित है ? आप ही विचार कर देखें। आपको लोग मृदुवित्तके नामसे कहते हैं। आपके साथ बोलने-चालनेवाले हम लोगोंको चतुर कहते हैं । जब आप इस प्रकार विचार करते हैं तो क्या