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________________ मरतेश वैभव ३८३ दक्षिण-आपसे किसीको दुःख हो सकता है । कहियेगा। बाहुबलि--पौदनपुरके बाहर चक्र एकदम रुक गया । इसलिये मुझे आधीन करनेके इरादेसे भरतेशने सेनाका मुक्काम कराया तो तुम आकर मुझपर दूसरी तरहसे रंग चढ़ा रहे हो, आश्चर्य है । तुमने मुझे नहीं कहा । साथमें तुम्हारी बातोंमें आकर मेरे मंत्रीमित्रोंने भी नहीं कहा । परन्त एक हितैषीने आकर मुझे सभी बातें कह दीं। अब उसे छिपानेसे क्या प्रयोजन ? इसलिए अधिक बोलनेकी जरूरत नहीं है। दक्षिण-स्वामिन् ! आप दोनोंका एकत्र सम्मिलन देखनेकी इच्छासे ही चक्ररत्न भी रुक गया । जबकि आप दोनोंको एकत्र देखनेकी छ, सभी दुनिमाको दुई तो या नको नहीं होगी ? उसीसे वह रुक गया। बाहुबलि-दक्षिण ! अन्दरको बात नहीं जाननेवालोंके पास चातुर्यको दिखाना चाहिये । हमारे पास यह तुम्हारी होशियारी नहीं चल सकती है। चुप रहो, बोलने के लिये सीखे हो, इसलिये बोल रहे हो क्या ? तुम्हारे राजाको इतना अहंकार क्यों ? समस्त पृथ्वीके राजाओंने उसको नमस्कार किया, उससे तृप्त न होकर समस्त सेनाओंके सामने मझसे नमस्कार करानेकी लालसा उसके मनमें हाई है। क्या मैं इस कार्यके लिये आऊ ? खेचर तो प्रेत है, भूचर व व्यन्तर तो भूत है । भूत-प्रेतोंने यदि डरकर उसको नमस्कार किया तो क्या यह कामदेव नमस्कार कर सकता है ? उसको आकर मैं नमस्कार क्यों करूँ ? मुझे किस बातकी कमी है ? पिताजीने मुझे जो राज्य दिया है उसको भोगते हुए मैं स्वस्थ है। इसे देखकर उसे ईर्षा होती है। बड़ेबड़े राज्य तो पिताजीने उसे देकर छोटासा राज्य मुझे दिया है, तो मेरे भाईको संतोष नहीं होता है ! आश्चर्य की बात है ! दक्षिण-राज्यकी क्या बात है ? राजन् ! सम्राट् अपने समृद्ध राज्योंमेंसे अर्ध राज्यको अपने छोटे भाईको देनेके लिए कभी-कभी कहते हैं । आप ऐसा कहते हैं। बाहुबलि-रहने दो ! तुच्छ हृदयवालोंको बोलनेके समान मुझे मत बोलो। दक्षिण–स्वामिन् ! क्रोधित नहीं होइयेगा। आपके बड़े भाईके गुणोंका श्रेय आपको ही है। बाहुबलि-रहने दो, मुझे राज्यके लोभको दिखाकर उपायसे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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