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भरतेश वैभव
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"स्वामिन्! अयोध्यापुरमें आयेंगे तो आप लोग महलमें बातचीत करेंगे । इसलिए हम लोगों को सुनने में नहीं आयेगी। यदि इस प्रकार बहिरंगमें आयेंगे तो हम लोग भी आप दोनोंको देखकर संतुष्ट हो सकते हैं। इसलिए पौदनपुरके पाससे जाते समय उनको बुलवायें । हम लोग छोटे व बड़े स्वामीका दर्शन एकसाथ कर संतुष्ट होंगे। तब भरतेश्वरने उसे सम्मति दी। अब वह स्थान दूर नहीं है पाँदनपुरके बाहर ही आपके बड़े भाई हैं। पाकर हम लोगोंकी आँखों को तृप्त करें" इस प्रकार कहते हुए दक्षिणांक ने साष्टांग नमस्कार किया ।
बाहुबलि - दक्षिण ! उठो ! उठो ! बैठकर बात करो। आप लोग निश्चित होकर अपने नगरकी ओर जाएँ। मैं कल ही आकर अयोध्यामें अपने भाई से मिलूँगा ।
दक्षिण – स्वामिन् ! उससे आप दोनोंको सन्तोष होगा, यह निश्चय है । तथापि सबकी इच्छाकी पूर्तिके लिए सम्राट्ने सेनाका मुक्काम कराया । इसलिए अब हम लोगोंकी प्रार्थना स्वीकार होनी चाहिए । सम्राट् मेरुपर्वतके समान खड़े हैं। आप यदि वहाँ पहुँचे तो दो मेरु एकत्रित होते हैं, उससे दोनोंका गौरव है। नहीं तो राजगम्भीतामें कुछ न्यूनता हो सकती है। व्यंतर, विद्याधर व राजालीक बहुत आशासे आप दोनोंका एकत्र दर्शन करनेकी आतुरता में खड़े हैं जब उनको मालूम होगा कि आप नहीं आ रहे हैं तब वे खिन्न नहीं होंगे ? इसलिये हे कामदेव ! आप लोकानन्द करनेवाले हैं। इसलिए इस कार्य में भी आप लोकके लिए आकुलता उत्पन्न न करें । अवश्य पधारें !
बाहुबलि -- दक्षिण ! मैं आनेके लिए तैयार हूँ ! परन्तु मुझे यहाँ पर कोई आवश्यक कार्य है, इसलिये अभी आना नहीं हो सकेगा । इसलिये कोई उपाय से भाईको तुम अयोध्याकी तरफ ले जाओ। मैं फुरसतसे उधर आता हूँ ।
दक्षिण- नहीं ! स्वामिन् ! नहीं ! ऐसा नहीं कीजियेगा । आपके बड़े भाईको देखकर, आप दोनोंके विनोद - विलासको जिन सेनाओंने आज तक नहीं देखा है उनके मनको सन्तुष्ट कीजियेगा । विरस उत्पन्न करना क्या उचित है ? भरतेश्वर सदृश बड़े भाईको देखनेसे बढ़कर और महत्वका कार्य क्या हो सकता है ! इसलिये हाथ जोड़कर मेरी विनती है कि आप इसमें कोई बहानाबाजी न करें ।