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________________ भरतेश वैभव रही है। कहीं कस्तुरीके पहाड़ ही दिख रहे हैं, कहीं फल है, तो कहीं भक्ष्य-भोज्य दिख रहे हैं । कोई आपसमें बोलते हैं तो भी भोगकी ही वात । वही चर्चा । स्त्रियोंका ही विचार । सारांश यह है कि नगरमें सर्वत्र भोगांग ही नजर आ रहा था। योगांग नहीं। सर्वत्र अनुरोग दृष्टिगोचर होता था वैराग्य नहीं। क्योंकि वह कामदेवकी ही तो राजधानी थी। इस प्रकार अनेक मोहलीलाको देखते हए दक्षिणांक आदि कामदेव बाहुबलिकी राजमहलकी ओर आये। अपने साथके सेवक व परिवारको रोककर वह अकेला ही राजमहलके द्वारपर पहुंचा। मोतीसे निर्मित दरवाजा था । द्वारपालकको सूचना दी कि अन्दर जाकर बाहुबलि राजाको खबर दो। वह चला गया। बाहुबलिकी दरबारमें उस समय अनेक सुन्दर स्त्रियाँ जा रही थीं। उनके हावभावोंको देखते हुए दक्षिणांक वहाँपर खड़ा था। कोई स्त्री कामदेवके लिये पुष्पमाला लेकर जा रही थी। जाईको माला तो कोई मल्लिकाकी माला । कोई कुंकुमचूर्णको तो कोई गुलाबजलको लिये हुई थी। कोई चन्दनको ले जा रही है, कोई केतकी पुष्पको ले जा रही है, कोई वीणाको लेकर जा रही है साथमें उसके स्वरको ठीक करती हुई जा रही है। उसका ध्यान इधर-उधर बिलकूल नहीं है। किसी स्त्रीके हाथमें किन्नरि है। कोई यन्त्र वाद्यको ली हुई है। इस प्रकार तरह-तरहके वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित होकर अनेक अलंकारोंसे लोकको मोहित करती हई अनेक स्त्रियां ऐंठसे आ रही हैं। कोई स्त्री उसकी चेष्टासे कह रही है कि मैं यदि अपने हाथसे एक दफे प्रियंगुषक्षको स्पर्श करूँ तो वह एकदम फल और फूलको छोड़ता है, फिर इतर विट पुरुषोंकी बात ही क्या है ? दूसरी कहती है कि मेरे आलिंगन देने पर कुरवक वृक्ष एकदम पल्लवित होता है, फिर पुरुषोंको रोमांच हो इसमें आश्चर्यकी बात ही क्या है? तीसरी कहती है कि चित्तत्वके अनुभवसे शून्य तपस्वी तो मेरे पैरके आभूषण हैं बाकी लोगोंकी बात ही क्या है ? अन्दर आत्मसुख और बाहर स्त्रीसुख इसे छोड़कर बाकी कोई भी चीज संसारमें नहीं है। इस प्रकार बाहुबलिका तत्व है। इसका वर्णन उनमेंसे कोई स्त्री कर रही थी। इन सब बातोंको देखते हुए दक्षिणांक बहुत देरसे उसी दरवाजे पर खड़ा है। इतनेमें वह द्वारपालक आया । दक्षिणांक समयसे पहिले हो तुम आ
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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