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________________ भरतेश वैभव ३६५ कर रहे थे तब पास में आनेके बाद साथके वीरोंने कहा कि सम्राट्की माता आ रही हैं। एकदम सेनाके समस्त बाद्य वजने लगे । सब लोग हर्ष से जब जयजयकार करने लगे। कोई हाथीपर चढ़कर, कोई घोड़ेपर चढ़कर, रथपर और कोई विमानपर चढ़कर, माता के स्वागत के लिये गये । कोई आकाशमें नमस्कार कर रहे हैं तो कोई जमीनपर | इस तरह सारी सेना में एकदम खलबली मच गई। साढ़े तीन करोड़ प्रकारके बाजे एकदम वजने लगी । भरतेशको अकस्मात् उपस्थित इस घटनासे आश्चर्य हुआ। पासमें खड़े हुए सिपाहीको तय करनेके लिये किया खु दरवाजेपर जाकर देखता है तो सेनामें एकदम खलबली मची हुई है । वहाँ कोई एक दूसरेका इस समय सुननेको भी तैयार नहीं हैं । दूतने आकर उत्तर दिया कि स्वामिन् ! सेना आपेसे बाहर हो गई है । कोई भी उत्तर नहीं दे रहा है । सब लोग गड़बड़ में पड़ गये हैं । तब भरतेशने विचार किया कि हम लोग दिग्विजयसे हर्षित होनेसे बेफिकर होकर जा रहे थे । कदाचित् कोई शत्रु इस मौकेको साधन कर हमला करनेके लिये तो नहीं आये हैं। अपनी रानियोंको अभय प्रदान कर सम्राट्ने सौनन्दक नामक खड्गको हाथमें लिया। उस एक खड्गको लेकर भरतेश बाहर आये। एक दफे उस खड्गको जोरसे फिराकर देखा तो एकदम प्रलयकालकी अग्निने जीभ बाहर निकाली हो ऐसा मालूम हुआ । भूकम्प हुआ । समुद्र उमड़ गया करोड़ों भूत चिल्लाने लगे। लोकमें भय छा गया । भरतेश जिस ढंगसे आ रहे थे उससे अनुमान किया जाता है कि शायद उस समय वे मनमें विचार कर रहे होंगे कि यदि कोई राक्षस भी इस समय मेरे सामने आये तो उसको पक्षीके समान भगाऊँगा । अर्थात् इतनी वीरता से आ रहे थे । इस प्रकार जगदेकवीर सम्राट् महलके मुख्य दरवाजेपर जब पहुँचे तब अर्ककीति आदि पुत्रोंने आकर नमस्कार किया । तदनंतर गणबद्ध देवोंने आकर नमस्कार किया। उसके बाद अनेक शुरवीर आये 1 मालूम हुआ कि मातुश्री आ गई हैं । भरतेश्वरके आश्चर्यका ठिकाना नहीं रहा! हा ! मेरी माताजी इस प्रकार आ गईं! इस प्रकार कहकर हँसते हुए खड्गको सेवकके हाथमें देकर उन शूरवीरोंका उचित सत्कार किया। इतनेमें विमानने आकर महलके आँगन में प्रवेश किया। उसमेंसे देवांगनाके समान यशस्वती
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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