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________________ भरतेश वैभव इसी भावनाका फल है कि उनको तीर्थंकरपरमेष्ठिका दर्शन हुआ । इति तीर्थगमनसंधि. ३६४ o अंबिकादर्शनसंधि भरतेश्वरकी आज्ञा पाकर सेनाने दूसरे दिन आगे प्रस्थान किया । स्थान-स्थान पर मुक्काम करते हुए बहुत विनोद-विलासके साथ अयोध्या की ओर सेनाका प्रयाण हो रहा है । पोदनपुर में समाचार मिला कि सम्राट् अब दिग्विजयसे लौट रहे हैं। पुत्रके द्वारा प्रेषित वस्त्राभूषणोंको माता यशस्वतीने व उनकी बहिन सुनंदादेवीने बहुत संतोषके साथ धारण किया व पुत्रको देखने की इच्छा यशस्वती माता के हृदयमें हुई । अब ८-१० दिनमें भरतेश्वर" अयोध्यापुरीमें पहुँच आयेंगे, तथापि तब तक ठहरनेकी दम नहीं है । आज ही जाकर पुत्रको आँख भरकर देखूं, यह इच्छा यशस्वतीके मनमें हुई। बहिन सुनंदादेवीने कहा कि जीजी ! अभी गड़बड़ क्या है जब अयोध्यानगर में सब लोग आ जावें तब अपन सब मिलनेके लिए जाएँगे । आज जानेकी क्या जरूरत है। उत्तर में यशस्वतीने कहा कि बहिन ! मेरा भरत जहाँ रहता है वहीं मेरे लिए अयोध्यापुर है। इसलिए मैं तो आज जाती हूँ । आपलोग अयोध्यापुरमें पहुँचने के बाद आयें । बाहुबलिने आकर माता से कहा कि मैं आज दूतोंको आगे भेजकर समाचार कहला देता हूँ आप कल जाएँ| यशस्वतीने उत्तर में कहा कि नहीं, समाचार भेजने की आवश्यकता नहीं, मैं गुप्तरूपसे जाना चाहती हूँ एकाएक अकस्मात् जानेसे भरतेश्वरको व उसकी रानियोंको आश्चर्य होना चाहिये। पहिलेसे समाचार भेजने से वह सेनाके साथ स्वागतके लिए आयेगा. यह मैं नहीं चाहती हूँ। साथ में विमानपर चढ़कर जाऊँगी | पालकोसे जाने में देरी लगेगी इत्यादि प्रकारसे बाहुबलिको समझाकर कुछ सेवक, विश्वासपात्र आदिको लेकर आकाशमार्ग से गमन कर गई । अब सेनास्थान निकट है । आकाशप्रदेर्शसे ही भरतेशकी उस विशाल सेनाको देखकर यशस्वती के मनमें अतिहर्ष हो रहा है। आकाश प्रदेशमें आते हुए विमानको देखकर समस्त सेनाको भी आश्चर्य होने लगा । हम लोग दक्षिणकी ओर जा रहे हैं। दक्षिणकी ओरसे ये कौन आ रहा है! बाजा नहीं, कोई खास निशान नहीं, केवल विमान हो रहा है, इत्यादि प्रकारसे जब आश्चर्यचकित होकर विचार
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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