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भरतेश वैभव
समय इनका नाम बहुत सोच समझकर रखा मालूम होता है । जिनराज मुनिराजके नामसे ये जिनमुनि होंगे ऐसा शायद आपको उस समय मालूम हुआ होगा । आश्चर्य है !" अर्ककीर्तिने कहा ।
भरतेश्वरने कहा कि बेटा ! जाने दो, मुझे चढ़ाओ मत ! तुम्हारे भाइयोंने जिस प्रकार मुझे फँसानेके लिए सोचा था, उसे विचार करनेपर मुझे हंसी आती है देखो तो सही ।
किस उपाय से हम लोगों को धोखा दे रहे थे ? हमने पूछा था कि आप लोग मौनसे क्यों आ रहे हैं ? उत्तर देते हैं कि आप लोगों की बातको हम सुनते हुए आ रहे हैं। पीछे की तरफ देखनेका कारण पूछने पर कैलास पर्वत के पुण्यातिशयका वर्णन करने लगे । अर्ककीति ! देखो ! तुम्हारे भाइयोंके चातुर्यको । इस बातको सुनकर सब लोग हँसे ।
उन पुत्रों में सबसे छोटे माणिक्यराज व मन्मथराज नामके थे । उनका नाम जैसा था उसी प्रकार वे सुन्दर थे। उन्होंने आगे आकर निवेदन किया कि पिताजी अब आपके सहोदर वृषभसेनाचार्य आदि छह भाइयोंने दीक्षा ली उस समय आपने उनको क्यों नहीं रोका ? उस समय आपने कुछ भी न बोलकर मौन धारण किया। परन्तु इनको रोका | क्या इस कार्यके लिये यह लोक प्रसन्न हो सकता है ? इस प्रकार निर्भीक होकर कहने लगे ।
भरतेश्वरने 'कहा कि ठीक है । उस समय मैं क्या करता ? उत्तरमें उन पुत्रोंने कहा कि आप कुछ दिनके लिए उनको रोकते, जैसा हमारे भाइयोंको रोका |
भरतेश्वर - क्या मेरे रोकनेसे वे रुक सकते हैं ?
पुत्र - पिताजी ! आप ऐसा क्यों कहते हैं ? बड़े भाई की बातको वे कभी उल्लंघन नहीं करते। आपने उनको रोका नहीं ।
भरतेश्वर -- रहने दो तुम्हारे भाइयोंने अभी हम लोगों को फँसाकर जानेका विचार कैसे किया था ? यह तुम नहीं जानते । जब कि मेरे पुत्रोंने मुझे धोखा देनेका विचार किया तो मेरे भाइयोंकी तो बात ही क्या है ? वे मेरी बात को कैसे सुनेंगे बेटा ! तुम लोग अभी छोटे हो, इसलिए पिताजी, पिताजी कहकर मुझे पुकारते हो । परन्तु कल मुझे फँसाकर चल दोगे यह में कह नहीं सकता । तुम लोगोंपर भी विश्वास करना कठिन है । गर्भ में आते ही हम लोगोंको पुत्र उत्पन्न होगा, इस विचारसे हम हर्षित होते हैं व उस भाग्यके दिनकी प्रतीक्षा करते हैं ।