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भरतेश वैभव
उस विषयमें कैसे आ सकता है ? लोकमें वचन ही मनके भावोंको झलकाते हैं, चक्रवर्ती भरत इस प्रकार अपने मनमें विचार करने लगे ।
इस लोकमें थलमें, जलमें इच्छानुसार गमन करना मत है. परंतु बिना आधारके कोई आकाशमें क्या चल सकता है ? नहीं। इसी प्रकार बाह्य लोग समस्त लोकका वर्णन कर सकते हैं, परन्तु अध्यात्मिक विषयका वर्णन करना उन लोगों के लिए कभी शक्य हो सकता है । शब्द समुद्र में प्रवेश करके एक-एक शब्दके सैकड़ों अर्थ करनेवाले विद्वान लोग तैयार हो सकते हैं। परन्तु शब्दरहित आत्मयोगका वर्णन करना सामान्य बात नहीं है। तर्कशास्त्र में गति प्राप्तकर परस्पर विवाद करनेवाले विद्वान् तैयार हो सकते हैं। परन्तु अर्क ( सूर्य ) के समान रहनेवाले आत्माको जानकर वचनसे कहना बहुत कठिन है ।
आगम, काव्य व नाटकके वर्णनसे लोगोंको आनन्दविभोर करके सुलाया जा सकता है, परन्तु आत्मयोगका वर्णन कौन कर सकता है ? स्त्रियोंकी वेणी, मुख व कुचोंका वर्णन करके लोगोंको प्रसन्न करना सहज साध्य है, परन्तु वचनागोचर परंज्योति आत्माका वचन द्वारा वर्णन करना क्या सरल है ?
युद्धका वर्णन करके सुननेवालेके हृदयमें जोश उत्पन्न करना सरल है, किन्तु आत्माका वर्णन करके दूसरोंके हृदयमें परमात्माका विचार उत्पन्न करना यह अत्यन्त कठिन कार्य है ।
जो आसन्न भव्य है जिनका संसार समीप है, उन्हीं लोगोंको अध्यात्मके विचार प्राप्त होते हैं। हर एकको नहीं । आत्मध्यान करनेवाले ही आत्मज्ञान की बात कहते हैं। दूसरोंको वह कला नहीं आ सकती । जिस प्रकार प्रत्यक्ष किसी विषयको देखनेवाला व्यक्ति उसका स्पष्ट वर्णन करता है, उसी प्रकार आत्माका प्रत्यक्षदर्शन करनेवाला व्यक्ति उसका वर्णन करता है। आत्माको प्रत्यक्षकरके फिर उसका वर्णन करनेपर भी अभव्य उसको नही मानते हैं। हाँ, भव्योत्तमोंके लिए बह अमृत है।
यह कवि अवश्य आसन्न भव्य है, सिद्धलोकका पथिक है। इस प्रकार चक्रवर्ती मन ही मन विचार कर रहे थे । फिर उनने अपने मुखसे स्पष्ट कहा है दिविजकलाधर ! तुम सचमुच में सुकवि हो, इधर आओ। इस प्रकार उसे अपने समीप बुलाकर उसे अपने हाथसे पारितोषिक प्रदान किया । सुवर्णकंकण, कंठमाला, कुण्डल आदि अनेक आभूषण