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________________ भरतेश वैभव विजयाधुगिरिको पार करते ही सेनाके समस्त सैनिकोंको देखकर आनन्द हुआ। आर्याखण्डको देखकर उन आर्यवीरोंको हर्ष हुआ । अभीतक युद्धके लिये प्रयाण था। परन्तु अब तो घरके लिये प्रयाण है। अतः सत्रका हृदय उत्साहसे भरा हुआ था । जाते समय सेनापति जहाँ कहता सबके सब सट मुक्काम करते । अब आने समय मुक्काम करनेके लिए कहें तो भी 'थोड़ी दर और जाव' ऐसा कहते थे। सबके मन में घर जानेकी उत्कंठा लगी। इसी प्रकार कुछ मुक्कामोंको तय करते हुए वे दक्षिणकी ओर आये, तब अपनी बाँय तरफ उन्होंने कैलाश पर्वतको देखा । सेनापतिको वहीं पर सेनाका मुक्काम करानेके लिये आशा हुईं। स्वयं भरतेश्वर सब परिवारको बहींपर छोड़कर कैलासकी ओर निकले । मागधामर, मंत्री आदिको सूचना दी गई कि वे सेना-परिवारकी तरफ नजर रखें । अपने साथ अपने बारह सौ पुत्रोंको लेकर वे निकले । विमानके द्वारा पवनवेगसे कैलासपर पहुँचे। समवसरणके बाहरके दरवाजेपर द्वारपालक खड़ा था । उससे भरतेश्वरने प्रश्न किया कि क्या हम अन्दर जा सकते हैं ? आज्ञा है या नहीं? द्वारपालकदेवने अपने मस्तकको झुकाकर कहा कि आप जा सकते हैं, आ सकते हैं । ऊध्वं, मध्य व अधोलोकके स्वामी आदिप्रभुके ज्येष्ठपुत्रको कौन रोक सकता है ? आप कल मोक्ष साम्राज्यके अधिपति होंगे। आप जाइयेगा। भरतेश्वरने पहिले परकोटेके अंदर प्रविष्ट होकर मानस्तंभके पास रखे हुए सुवर्णकुंडके जलसे पैर धो लिये । तदनंतर पुनः विनयके साथ अन्दर चले गये । भरतेशके पुत्र मन में सोच रहे थे कि आज पिताजी अपने पिताके पास जिस विनय व भक्तिसे जा रहे हैं, उससे आगेके लिये वे सिखाते हैं कि हमें अपने पिताके पास किस प्रकार जाना चाहिये। तदनन्तर दो सुवर्ण प्राकार, बाद एक रत्नप्राकार, तदनन्तर तीन सुवर्णके, तदनन्तर दो स्फटिकके इस प्रकार आठ परकोटोंकी शोभाको देखते हुए आगे बढ़े । आठ द्वारोंपर द्वारपालक हैं। परंतु नवमें द्वारमें कोई द्वारपालक नहीं है। आठ द्वारपालकोंसे अनुमति लेकर भरतेश्वर अन्दर प्रवेश कर रहे हैं। अन्दर प्रविष्ट होनेके बाद वहाँपर व्यवस्थापक देवोंके शब्द सुनने में आये 1 कोई कहता है धरणेंद्र ! ठहरो देवेंद्र ! आप पहिले बन्दना करें । दिक्पालक लोग बैठ जावें, योगिजन बैठनेकी कृपा करें । गरुड़ जातिके देव यहाँ बैठें, यक्ष गणोंका यह स्थान है, सिद्ध और
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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