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________________ ३५८ भरतेश वैभव रहें। कौनसी बड़ी बात है ? भरतेश्वरके आधीनस्थ एक एक राजाके पास एक-एक करोड़ ग्राम हैं। इस प्रकार एक करोड़ ग्रामोंके अधिपति ऐसे ३२ हजार राजा उनके आधीन हैं। पुत्रोंके विवाह के समय इन बहिनोंने द्वाररोधन किया था, उस समय इन ग्रामोंको देनेके लिए सम्राट्ने वचन दिया था। स्वतः के विवाह के समय, पुत्रियोंके विवाह के समय जितने भी ग्रामोंको इनाम देनेके लिये सम्राट्ने वचन दिये थे, उन सबका हिसाब करनेपर वह मध्यखंडके एक दशमांश हिस्सा हुआ । बाकीके नौ हिस्से तो रह गये । गंगादेवी व सिंधुदेवीने भी भाईको मंगलतिलक लगाया व अपने पतियोंके साथ वहाँसे विदा हुई । उसी समय मेधेश्वर व विश्वकर्मा दाखिल हुए। उनको आगे के मार्गको साफ करनेके लिये आज्ञा दी गई। खाइयाँ भर दी गईं । पुल बाँधे गये । माकालको पत्र लिखनेकी आज्ञा हुई। दोनों माताओंको उत्तमोत्तम उपहारोंको भेजने के लिए हुकुम दिया गया। पोदनपुर व अयोध्याको दो विश्वस्त दूतोंको भेजने के लिए आज्ञा की गई । वह दिन इसी प्रकारकी व्यवस्थामें व्यतीत हुआ। दूसरे दिन प्रस्थानकी भेरी बजा दी गई। भरतेश्वरकी सेनाने 'बहुत वैभवके साथ बहाँसे प्रस्थान किया । ध्वजपताका, विमान, गाजेबाजेके द्वारा उसमें विशेष शोभा आ गई थी । षट्खंडको जीतकर अपने धवल यशको तीन लोकमें फैलाते हुए भरतेश्वर जा रहे हैं ! जिस समय दिग्विजय के लिए भरतेश्वर निकले थे उस समय उनकी एक सेना व दूसरी अर्ककीर्तिकी सेना इस प्रकार दो ही सेना थी, परन्तु अब लौटते समय तीन सेना हो गई है। जिन पुत्रोंका विवाह हुआ है, ऐसे हजार पुत्रोंका एक साथ व्यंतरोंके साथ करके भरतेश्वरने उनको गमन कराया। उसका नाम अर्कक्रीतिसेना है । वह सबसे आगे जा रही है। उसके पीछे छोटे पुत्रोंकी सेना जा रही है । स्वतः भरतेश्वर उन गुफाओंको पार करते समय विमानपर चढ़कर जा सकते थे । परन्तु हाथी, घोड़ा, रथ वगैरहको छोड़कर वे अकेले ही जाना नहीं चाहते थे । अतः सबके हित की दृष्टिसे उनके साथ ही जा रहे थे । जिस प्रकार चंडतमित्र गुफाको उस दिन पार किया था, उसी प्रकार आज चंडप्रपात गुफाको पारकर दक्षिण भूमिका अवलोकन सम्राट्ने किया । नाटयमालने पहिलेसे चक्रवर्तीके स्वागतके लिये स्थान-स्थान पर तोरण वगैरह बांधकर शोभा की थी । उसको बुलवाकर भरतेश्वर ने उसका सम्मान किया | योग्य स्थानको जानकर उस पर्वतके पासमें ही गंगाके तटपर सेनाका मुक्काम कराया । I
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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