SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतेश वैभव ३४१ वह बोलती ही नहीं। बेटी इधर देखो तो सही ! सब लोग प्रसन्न होकर तेरी तरफ देख रहे हैं। तू आँख मींचकर बैठी है । पगली | तुमने आँख मींच ली तो क्या हुआ ? क्या लोग भी तुम्हें नहीं देख सकते हैं ? भरतेश्वरकेअनेक प्रकारके वार्तालापों को सुनकर भी वह मधुराजी मौनसे बैठी है । फिर सम्राट् कहने लगे कि इतना सब होते हुए भी मधु राजी क्यों नहीं बोलती ? हाँ ! समझ गया । आज मेरी बेटी ध्यान कर रही होगी । मधुराजी अन्दरसे हैंस रही थी । बेटी मोक्षसिद्धिको तुम लोग अपने आत्मामें ही करनेके लिए प्रयत्न कर रही हो। मुझे भी थोड़ा समझा दो 1 कहो कि आत्मसिद्धिके लिए मुझे क्या क्या करना पड़ता है । मधुराजी मौनभंग नहीं करती है । भरतेश्वर और भी अनेक प्रकारसे उसे बुलाने का प्रयत्न कर रहे हैं। परन्तु वह बोलती नहीं । भरतेश्वरने पुनः कहा कि बेटी ! मुझसे क्या गलती हुई ? क्षमा कर । उसके पैर छू रहे हैं । पहिलेके आभरणोंको निकालकर नवीन आभरणोंको धारण करा रहे हैं । मधुराजी और भी लज्जित हुई। एकदम वहाँसे निकलकर भाग गई । भरतेश्वरकी वृत्तिको देखकर रानियोंने विद्याधरदेवियोंके साथ कहा कि देखा ! तुम्हारे भाईकी गम्भीरताको देख ली ! तत्र विद्याधरियोंने कहा कि इसमें क्या हुआ ? अपनी पुत्रोंके प्रति प्रेम करना क्या यह पाप है ? हमारे भाईने इससे अधिक क्या किया ? यह लोककी रीति है। उस दिनकी विनोदगोष्ठी बन्द हो गई। एक दिनकी बात है । पहिलेके समान ही महलमें सम्राट् सरस व्यवहार करते हुए बैठे हैं। इतने में कनकराज, कांतराज आदि नमिराजके तीन सौ पुत्रोंने शांतराज आदि वितमिके सौ पुत्रोंने आकर सम्राट्को नमस्कार किया। तब सम्राट्ने मधुवाणीसे पूछा कि मधुबाणी ! ये कुमार बड़े सुन्दर हैं । इन लोगोंने क्या क्या अध्ययन किया है ? तब मधुवाणीने कहा कि स्वामिन्! ये लोग शस्त्रशास्त्रादि अनेक विद्याओं में निपुण हैं। विद्याधरोचित्त अनेक विद्याओंको इन्होंने सिद्ध कर लिया है । सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र से भी संयुक्त हैं । तब सम्राट्ने उनको वहाँपर बैठाकर अपने पुत्रोंको भी बुलवाया। तब भरतेश्वरके सैकड़ों पुत्र पंक्तिबद्ध होकर आने लगे। मधुराज विधुराज नामक दो पुत्रोंनेपहिले पिता के चरणोंमें नमस्कार किया। बाकी पुत्रोंने भी नमस्कार किया। सबको आशीर्वाद देकर बैठने के लिए कहा। भरतेश्वरने पुनः अपने पुत्रोंसे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy